Saturday, 11 November 2017

मेरी एक कविता - मैं खो गया हूँ किसी मंजिल की तलाश में

मैं खो गया हूँ किसी मंजिल की तलाश में
मैं पथ को भूल गया, या चल रहा हूँ आस में
खुशी की तलाश में निकला था, खुशी को पीछे छोड़ आया।
मैं फिर भी चल रहा हूँ, उम्मीद को दबाये हुए।
पहचान बनाने निकला था, परछाई बन गया हुँ।
इतिहास बदलने निकला था, मासूम बन बैठा हूँ।
मैं कहाँ हुँ मुझे पता नही, मंजिल क्या है मुझे पता नही।
मैं भूल गया हूँ सबकुछ, पर इसमे कोई खता नही
हाँ नही कोई खता, मैं फिर भी डट रहा हूँ
समय काट रहा हूँ, या खुद कट रहा हूँ।
जिंदगी ने ऐसा मजाक बना दिया
भले मानुस को कठपुतली बना दिया

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