#सीरियल - जरूरी काम छोड़ कर देखते थे
भारतीय टेलीविजन भी बहुत ही उन्नत रहा है. भले यह अमेरिकी टीवी धारावाहिकों या ब्रिटेन की टीवी धारावाहिकों की तुलना में एकदम अलग हो. पर इससे बिल्कुल यह आशय नहीं कि भारत के टीवी सीरियल कमतर रहे हैं.
बीते कुछ वर्षों में पश्चिमी टीवी के देखादेखी भले इन दिनों टीवी धारावाहिकों के देखने वाले उतने जोशीले न रह गए हों, पर इसी देश में ऐसे दौर रहे हैं जब धारावाहिक के समय लोग जरूरी कामों को छोड़ आते थे.
हमारे ठीक ऊपर की पीढ़ी याद करती है, जब महेंद्र कपूर की बुलंद आवाज "महा...आ...भारत" कानों पड़ती थी तो लोग जो कुछ कर रहे होते थे वहीं छोड़कर टीवी के पास भागे आते थे.
यही आलम कुछ साल पहले घर की औरतों का था जब 'बालिका बधू' शुरू होता था. भारतीय टीवी सीरियल के समृद्ध इतिहास में 'हम लोग', 'बुनियाद', 'ब्योमकेश बख्शी', 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने', 'नीम का पेड़', 'बिक्रम बैलात', 'अलिफ लैला', 'मालगुडी डेज', 'भारत एक खोज', 'परमवीर चक्र', 'चित्रहार', 'रंगोली' से लेकर 'भाभी जी घर पर हैं', 'बिग बॉस' और 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल शर्मा' तक का सुरूर चढ़ता-उतरता रहा है.
भारत एक खोज : दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक को हिंदी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित श्याम बेनेगल ने बनाया था। यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की किताब भारत एक खोज (Discovery of India) पर आधारित था। इस सीरियल का मूल प्रसारण 1988 से किया गया और यह दूरदर्शन पर काफी लोकप्रिय भी रहा।
चित्रहार: दुनिया में टेलीविजन इतिहास का यह सबसे लंबा प्रसारित होने वाला प्रोग्राम था। यह सन् 1960 के दशक में शुरू हुआ था और 1970 के दशक तक आते-आते लोकप्रियता के चरम पर पहुंच गया। हर शुक्रवार को प्राइम टाइम में तकरीबन 30 मिनिट तक चलने वाले इस कार्यक्रम में बॉलीवुड के नये पुराने गीत बजाए जाते थे। एक दौर में जबकि भारत में रेडियो अपनी लोकप्रियता के चरम पर था तब गीतों को उनके ऑडियो सहित वीडियो फॉर्म में सिनेमा के अलावा टीवी पर देखना नया अनुभव था। चित्रहार आज भी चल रहा है।
बुनियाद : भारत में टेलीविजन आने के शुरुआती दौर में बुनियाद सीरियल ने भी अपने दर्शकों के बीच खासी जगह बनाई। यह सीरियल भी हम लोग सीरियल के समकालीन ही था। इसे 1986 में पहली बार दूरदर्शन पर ही प्रसारित किया गया। यह भारत-पाकिस्तान विभाजन त्रासदी पर आधारित था। इसे रमेश सिप्पी और ज्योति ने निर्देशित किया। इस नाटक की लोकप्रियता इतनी थी कि इसे सालों बाद कई निजी चैनलों ने भी ऑन एयर किया था।
हम लोग : यह दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाल पहला डेली सोप था। मध्य और निम्नवर्गीय परिवार के जीवन के रोजमर्रा के संघर्षों और उम्मीदों को इसमें दर्शाया गया था। इस सीरियल ने अपनी लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। 7 जुलाई 1984 को इसे पहली बार दूरदर्शन पर टेलीकास्ट किया गया। 156 ऐपिसोड में चले इस सीरियल को मनोहर श्याम जोशी ने लिखा था।
रामायण : सन् 1987 से लेकर 1988 तक दूरदर्शन पर प्रसारित इस धारावाहिक में पहली बार जनता ने अपने आस्था के प्रतीक श्री राम को छोटे पर्दे पर जीवंत देखा। रामानंद सागर द्वारा निर्देशित इस सीरियल की लोकप्रियता की भी किसी से तुलना नहीं हो सकी। दरअसल, उस दौर में जबकि भारत में टेलीविजन चंद घरों में ही पहुंचा था और रामचरितमानस और वाल्मिक रामायण मंदिरों, घरों और गांव की चौपालों में आस्था और श्रद्धा के साथ गाई जाती थी, ऐसे दौर में रामायण का पर्दे पर आकार लेना लोगों के लिए न केवल कौतुहल था बल्कि अपनी भक्ति के आराध्य का जीवंत होना ही था। अरुण गोविल की लोकप्रियता राम के रूप में आज भी प्रासंगिक है।रामानंद सागर की प्रस्तुति रामायण देश का पहला टीवी धारावाहिक था, जिसने आमजन की टीवी में आस्था जगा दी. इस धारावाहिक को देखते वक्त लोग खुश-दुखी होते थे.
रामायण के कुछ-कुछ एपिसोड इतने मार्मिक हैं कि लोग देखने के घंटे-घंटे भर बाद तक आंसू बहाते रहे.
भारत के लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों के बारे में जब कभी लिखा-पढ़ा जाएगा तुलसीदास लिखित रामचरित मानस का टीवी रूपांतर प्रस्तुतिकरण 'रामायण' नाम पहली पंक्ति में आएगा.
हमसे ठीक ऊपर की पीढ़ि के लोग बताते हैं कि रविवार सुबह 9:30 का जैसे लोगों को सोमवार से ही इंतजार रहता था. 78 कड़ियों वाले इस धारावाहिक ने दूरदर्शन को लाखों रुपयों का मुनाफा भी दिया.
25 जनवरी 1987 से 31 जुलाई 1988 हर रविवार लोग जहां टीवी दिखती थी वहीं चिपक जाते थे. इसके प्रभाव इतना गहरा था कि इस टीवी सीरियल के पोस्टर को लोग अपने घरों में लगाकर पूजा करने लगे थे.
जो लोग उन दिनों बड़े हो रहे थे उनके मन में प्रभु राम का नाम आने वही छवि सामने आ जाती थी जो सीरियल में राम का किरदार था.
इस धार्मिक सीरियल ने टीवी को अरुण गोविल (राम), दीपिका (सीता), दारासिंह (हनुमान), सुनील लाहिरी (लक्ष्मण), ललिता पवार (मंथरा), अरविंद त्रिवेदी (रावण) जैसे कलाकार दिए.
महाभारत: 2 अक्टूबर 1988 को पहली बार प्रसारित हुए महाभारत ने भारतीय जनमानस की आत्मा को छू लिया। देश की जनता ने केवल चंद पन्नों में दर्ज अपनी आस्था की किताब और उसके महाविशाल कथानक को पहली बार टीवी नाम के डिब्बे में देखा। श्री कृष्ण, भीष्म, भीम, कुंति, द्रौपदी और श्री कृष्ण के चरित्र को टीवी पर देखकर पूरा देश मानों टीवी से चिपक जाता था। निर्माता बीआर चोपड़ा और निर्देशक रविचोपड़ा का यह सीरियल भारतीय टेलीविजन का इतिहास का सबसे लोकप्रिय सीरियल बन गया। यह पूरे दो साल चला। यह 24 जून 1990 तक प्रसारित किया गया। महाभारत का प्रत्येक ऐपिसोड 45 मिनिट का हुआ करता था और यह सप्ताह में केवल एक दिन, यानी रविवार को दिखाया जाता था। महाभारत की लोकप्रियता इतनी थी कि इसके शुरू होते ही शहरों की गलियां, मोहल्ले और महानगरों की कॉलोनियां सन्नाटे में डूब जाती थी। इस धारावाहिक जितनी लोकप्रियता, भारत में किसी भी धारावाहिक को नहीं मिली।
भारत में महाभारत आज तक सबसे अधिक उत्साह के साथ देखा जाने वाला टीवी सीरियल माना जाता है. आज भी लोग ढूंढ-ढूंढ कर इसके एपिसोड देखते हैं. यूट्यूब पर इसके एक-एक एपिसोड लाखों-लाखों लोगों देखा है, जैसे- एपिसोड 49, 50, 51, 52, 53, 54 वाले 4 घंटे से अधिक वाले वीडियो को अभी तक 1,397,859 लोगों ने देखा है.
इस धारावाहिक को इस बात का भी श्रेय जाता है कि इसने टीवी धारावाहिकों में भारतीय लोगों का विश्वास जगाया. इसी धारावाहिक एक भारतीय टीवी को एक बड़ा दर्शक वर्ग दिया, जिस पर आजतक काम किया जा रहा है.
इस धारावाहिक प्रमुख आकर्षण इस महाकाव्य में भारतीय लोगों का विश्वास है. इसे महर्षि वेदव्यास ने लिखा है. टीवी के दुनिया के बड़े नाम बीआर चोपड़ा ने इसका निर्माण किया था, उनके बेटे रवि चोपड़ा ने इसका निर्देशन किया.
इसके कुल 94 एपिसोड, 2 अक्टूबर 1988 से लेकर 24 जून 1990 के बीच में प्रसारित हुए.
इस टीवी सीरियल ने भारतीय कलाकार समाज को फिरोज खान, गजेन्द्र सिंह चौहान, मुकेश खन्ना, रोनित रॉय, पुनीत इस्सर, पंकज धीर, सुरंद्र पाल, नितीश भारद्वाज, चेतन हंसराज, गुफी पेंटल, उमाशंकर, आर्यन वैद्य, किरण करमरकर, हर्षद चोपड़ा जैसे नये प्रतिभाशाली चेहरे दिए, जो बाद में खूब टीवी तो टीवी सिनेमा में भी खूब मशहूर हुए. साल 2013 में एक बार फिर से इस धारावाहि को जीवित करने की कोशिश की लेकिन यह वैसा प्रभाव नहीं जगा पाया
चंद्राकांता उपन्यास के टीवीकरण का प्रसारण 4 मार्च, 1994 को शुरू हुआ. खास बात ये कि नीरजा गुलेरी के निर्देशन ने उन्हें मूल लेखक देवकी नंदन खत्री से भी ऊपर स्थान दिला था. इसके करीब 130 एपिसोड के बाद यह बंद हुआ.
इस सीरियल में क्रूर सिंह का अभिनय करने वाले अखिलेश मिश्र को तो बाद में बॉलीवुड ने हाथों-हाथ लिया. उन्होंने 100 से अधिक फिल्मों का काम किया प्रकाश झा कि फिल्मों अपहरण, राजनीति आदि में उनके किरदार बहुत सराहा भी गया.
एक और सितारा इस सीरियल में था, जो अब लोगों का चहेता बना हुआ है, उसका नाम है इरफान खान.
महाभारत और रामायण जितना तो नहीं पर उसी के आसपास के दर्शक इसके भी रहे. लोगों को सीरियल देखने के लिए बड़ी बेसब्री से रविवार की सुबह का इंतजार रहता था.
महाभारत, रामायण, चंद्रकांता जैसा जादू बाद के दिनों अगर कोई टीवी सीरियल कर पाया तो वह है, शक्तिमान. इसका ऐसा प्रभाव हुआ कई लड़कों ने अपनी जान दे दी. यह ऐसा टीवी सीरियल रहा जिसके प्रसारण समय इसलिए बदलना पड़ा कि बच्चे स्कूल जाने से मना कर देते थे. या स्कूल से भाग जाते थे.
महाभारत में भीष्म का किरदार करते हुए मुकेश खन्ना को उतनी लोकप्रियता नहीं मिली थी, जितनी शक्तिमान ने दिलाई. इन्हीं के साथ गुरु द्रोणाचार्य बनकर जितना सुरेंद्र पाल लोगों को नहीं रिझा पाए उससे ज्यादा उनका खौंफ तमराज किलविश के रूप में लोगों तक पहुंचा.
शक्तिमान को भारत का पहला सुपरहीरो भी कहा जाता था. यह एक खास तरह से हाथ घुमाकर आसमान में उड़ जाया करता था. कुछ बच्चों ने भी ऐसा करने की कोशिश की. कुछ बच्चों को लगा कि वह छत से कूदेंगे तो शक्तिमान उन्हें बचाने आएगा.
सीरियल ने 400 एपिसोड सफलतापूर्वक पूरे किए और टीवी की दुनिया में छा गया. 27 सितंबर, 1997 से शुरू होकर यह
ज्यादातर सबके पास कोई न कोई ऐतिहासिक ग्रंथ या चरित्र थे. क्योंकि तब इनके खूब चलन थे. इनमें खास बात यह कि जिस तरह महाभारत कूटनीति पर आधारित और भारत में मशहूर हुआ उसी तरह चाणक्य की कूटनीति वाला धारावाहिक भी पसंद आया.
अहम बात ये कि इसके निर्देशक चंद्र प्रकाश द्वीवेदी एक शानदार निर्देशक हैं. उनके कहानी कहने के तरीके से लोग खूब प्रभावित हुए. यथार्थ पर आधारित यह धारवाहिक 8 सिंबर, 1991 को शुरू हुआ और करीब 48 ऐपिसोड के बाद 9 अगस्त, 1992 को खत्म हुआ.
जंगल-जंगल बात चली पता चला है, चड्ढी पहन कर फूल खिला है पता चला है" इस गाने के साथ रविवार की दोपहर 12 बजे जब मोगली की कहानी शुरू होती थी तब बच्चे तो क्या बड़े-बुजुर्ग भी अपनी-अपनी खाट टीवी की ओर कर लेते थे.
यह एक जापानी टीवी सीरियल है जो 2 अक्टूबर 1989 में शुरू हुआ. वहां इसका नाम "जंगुरू बुक्कू शोनेन मोंगरी" था. जुलाई 1993 दूरदर्शन पर "द जंगल बुक" नाम से इसकी शुरुआत हुई.
यह मोगली नाम के एक मोगली बच्चे की कहानी है, जो जंगल में ही बड़ा हो रहा है जंगली जानवरों से बातें करता है. उन्हीं की तरह उछलता कूदता है. इससे पहले के सीरियल में इतनी टेक्नॉलोजी नहीं थी.
इस सीरियल ने भारत को एक आयाम दिया, जिसका नतीजा है कि आज बच्चों पर केंद्रित बीसियों चैनल चल रहे हैं, जो सुबह से शाम तक बच्चों के लिए ही कार्यक्रम चलाते हैं और इनकी अच्छी-खासी पहचान भी है. हाल ही जब इसकी फिल्म रिलीज हुई तब भी भारत में खूब मशहूर हुई.
भारतीय टीवी में क्रांति आई थी. एक साथ कई चैनल खुले थे. सबमें कुछ नया करने की होड़ मची हुई थी. लोग किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे. इसी बीच 3 जुलाई, 2000 को ठीक उसी दिन जिस 'कौन बनेगा करोड़पति' का पहला एपिसोड दिखाया गया, एक धारावाहिक और आया.
शुरुआती ऐपिसोड में लोगों ने लोग इसे भी बाकी सीरियलों की तरह देखते रहे. लेकिन बालाजी टेलीफिल्म्स के इस सीरियल का प्रसारण जैसे बढ़ता गया, दर्शकों के सिर पर चढ़ता गया.
असर इतना कि इस टीवी सीरियल ने भारत को एक शिक्षा मंत्री दे दिया.
सास-बहू के रिश्तों पर आधारित यह सीरियल मध्यवर्गीय शहरी परिवार की रोजमर्रा जिंदगी की कहानी थी. वर्तमान देश की कपड़ा मंत्री व पूर्व शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी इसमें मुख्य बहू की भूमिका में थी.
इसका आखिरी एपिसोड 6 नवंबर, 2000 को प्रसारित हुआ. स्मृति के अलावा इसने सुधीर दलवी, सुधा शिवपुरी, शक्ति सिंह, अपरा मेहता, अमर उपाध्याय, जीतें लालवानी और राकेश पॉल को भी टीवी में पहचान दिलाई.
टीवी धारावाहिकों के मशहूर हुए जब जमाने गुजर गए, सालों बाद जब जो अलख महाभारत-रामायण ने लोगों में जलाई थी टीवी देखने की वह मद्धम पड़ने लगी, तमाम चैनल एक साथ खुल गए, सुबह-शाम हर समय धरावाहिक आने लगे तो बालिका बधू ने एक नई मिसाल पेश की.
इस धारावाहिक में जिस दिन मुख्य किरदार आनंदी को गोली लगी और ऐसा लगा कि शायद वह मर जाएगी तो तमाम घरों में उस दिन चूल्हे नहीं जले. तमाम-सास बहू की कहानियों के बीच यह एक ऐसा सीरियल प्रसारित हुआ जिसने भारतीय टीवी को नये सिरे से परिभाषित किया.
21 जुलाई 2008 से शुरू हुआ यह सीरियल इसी साल 31 2016 को बंद हुआ. यह भारतीय टीवी सीरियल का सबसे लंबे दिनों तक चलने वाला सीरियल रहा. आप इस बात से इस सीरिलय की लंबाई का अंदाजा लगा लीजिए कि मुख्य किरार आनंदी 3 बार बदली गईं.
सबसे पहले अविका गौर ने इस किरदार को खूब जिया. इसी साल दुनिया छोड़कर गईं प्रत्यूषा बनर्जी और आखिर तक इसके साथ रहीं तोरल रासपुत्र आनंदी बनीं.
या तो महाभारत भारत की गलियां शांत कर देता था, आने-जाने वाले जहां टीवी पाते थे वहीं ठहर जाते थे, या फिर कौन बनेगा करोड़पति यह काम कर पाया. भारतीय टीवी में यह अपने आप में अनोखा टीवी कार्यक्रम था.
इससे पहले टीवी पर इस तरह के शो नहीं आते थे. इसे भारत का पहला टीवी गेम शो माना जाता है. फिल्मों की दुनिया में सबसे बड़ा नाम होने के बाद जब अमिताभ फिसले और सड़क पर आने की नौबत आ गई तब उन्होंने टीवी का सहारा लिया.
साल 2000 में कौन बनेगा करोड़पति ने अमिताभ बच्चन को नई उचाइयां दीं. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा आपको इस बात से भी लगा सकते हैं कि अलग-अलग संस्करण आने वाले सालों में भी होने वाले हैं.
3 जुलाई, 2000 को पहला और इसके 8वें संस्करण का प्रसारण नवंबर 16, 2014 को हुआ था. इसके 9वें संस्करण के लिए भी तैयारियां जारी हैं.
आमतौर पर मेरा स्वभाव tv पर दिखाए जाने वाले सीरियल विरोधी रहा है। सीरियल ! चाहे कोई से भी सीरियल हो, मुझे नफरत सी होती है। मेने कभी भी कोई सीरियल देखने की इच्छा जाहिर नही की। जब भी tv देखता था तो फिल्मी चैनल, या फिर म्यूजिक चैनल ओर इन सब से ज्यादा प्राथमिकता मैं न्यूज़ चैनल को देता था।
जब हमारे घर मे एक ब्लैक वाइट tv का दौर था, तब नेशनल चैनल पर कुछ प्रख्यात सीरियल आया करते थे जिसका मेरे परिवार को काफी चस्का था'। वो हुए न हमारे' आप बीती' ' हवाएं' 'शक्तिमान' 'कुंती' ' मेहर' ' तलाक क्यों' आदि। बहुत से तो मैं भूल भी गया। करमचंद्र, सरस्वती चंद्र, पवित्र बंधन, । महाभारत, रामायण की तो पूछो ही मत। ये तो गजब का विख्यात हुआ था। जिसके घर मे tv थी, वो घर भर जाता था जब महाभारत और रामायण आती थी। हमारे घर मे खुद भीड़ लग जाती थी। क्योंकि शुरुवाती tv यही थी। तब मैं ये सीरियल जरूर मैं देखा करता था। फिर 2007 में रंगीन tv की दुनिया मे घुस गए और सीरियल बदल गए। कसौटी जिंदगी की,' कुमकुम' ,बहने' कभी सास भी बहु थी,' यहां मैं घर घर खेली', दिया बाती, वगेरा।
मैं सीरियल का विरोध इसलिए करता था क्योंकि ये जहर फैलाते है। देवरानी जेठानी, सास- बहु को लड़ने का पैंतरा दिखाते है। 😀😀
sub tv के प्रोग्राम मुझे काफी अच्छे लगते है। हास्य धारावाहिकों के लिए जाने जाने वाले इस चैनल पर लोगों की रुचि बढ़ी है। अब सीरियल सास बहू के सीमित न होकर हास्य क्षेत्र में प्रभाव बाधा है। 2009 से एक सीरियल ने तो ताबड़तोड़ कमाई की जो अब तक फ्लॉप नही हो रहा। आप जानते ही होंगे " तारक मेहता का उल्टा चश्मा' जो झेठा लाल के अनूठे अंदाज के कारण सुप्रसिद्ध हुआ। इसी तरह इसी चैनल पर एक सीरियल आता है - गुटरगुं । जो हिन्दुस्तान के धारावाहिक इतिहास का पहला मौन धारावाहिक है।
सोनी tv पर सर्वाधिक चलने वाला धारावाहिक- " दया दरवाजा तोड़' 😀😀 याद आया?? ... CID ।
फिर दौर शुरू हुआ रियल सीरियल का। बिगबॉस, झलक दिखला जा, सारेगामा, did लिटिल चेम्स, इंडिया गोटज टेलेंट, कपिल शर्मा, आमिर खान का सत्यमेव जयते, कोन बनेगा करोड़पति ये रियल सीरियल है।
बच्चों के सीरियल में छोटा भीम, सोन परी, शक्तिमान, बाल वीर भी काफी ऊपर है।
क्राइम पेट्रोल, देवो के देव महादेव, हातिम, नव्या, प्यार का दर्द है मीठा- मीठा, ये रिश्ता क्या कहलाता है, ये है मोहोब्बते, मन की आवाज प्रतिज्ञा, इन प्यार को क्या नाम दूँ, साथ निभाने साथिया, ससुराल गेंदा फूल, राजा की आएगी बारात, रुक जाना नही, पुनर्विवाह, एक हज़ारों में मेरी बहना है, सावधान इंडिया, एक वीर की अरदास वीरा, भाभी जी घर पर है, व रहस्य को बढ़ावा देने वाला सीरियल नागिन भी उच्च trp पर था।
ऎतिहासिक तत्वों पर आधारित सीरियल भी लोगों को पसंद आये - जोधा अकबर, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, महाराणा प्रताप, टीपू सुल्तान, शिवाजी, चंद्रगुप्त मौर्य आदि।