Thursday, 24 August 2017

24 aug. 2017 Public relation officer


दुनिया के बदलते परिदृश्य में आज सुनियोजित और प्रभावकारी ढंग से संचालित संगठनों की सफलता और यहां तक कि उनके अस्तित्व के लिए भी पब्लिक रिलेशन (जनसंपर्क) बहुत जरूरी हो गया है।  
न केवल सरकारी, सहकारी, निजी, राजनीतिक , शैक्षिक, धार्मिक संस्थाओं के लिए अपितु व्यक्ति विशेष के प्रचार-प्रसार के लिए भी पब्लिक रिलेशन महत्वपूर्ण विधा बनकर उभरा है।   अगर आपमें अपनी बात दूसरों तक पहुंचाने और अपनी बात मनवाने की क्षमता है तो यह मान लें कि पब्लिक रिलेशन का क्षेत्र आप ही के लिए बना है।
 
पब्लिक रिलेशन ऑफिसर (पीआरओ) की नौकरी बेहद ही रुचिकर होती है। इसके अंतर्गत न सिर्फ अपनी संस्था या व्यक्तिकी इमेज ही मार्केट में बनानी होती है बल्कि अपनी संस्था की उन्नति, सुविधाएं, क्षेत्र के विषय में भिन्न-भिन्न मैग्जीन, न्यूज पेपर, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा संबंधित कॉर्पोरेट ब्रॉशर आदि द्वारा लोगों तक जानकारियां भी पहुंचानी होती हैं।   पीआरओ को प्रेस और जनता से जानकारी संबंधी कॉलों के उत्तर भी देने होते हैं। उन्हें निमंत्रण सूचियों और प्रेस सम्मेलनों के ब्यौरे तैयार करने संबंधी कार्य, आगंतुकों और ग्राहकों के स्वागत  अनुसंधान में सहायता, सूचना प्रपत्र लिखने, संपादकीय कार्यालयों में विज्ञप्तियां भेजने और मीडिया वितरण सूचियां तैयार करने जैसे कार्य करने होते हैं।  
अधिकतर लोगों का यह मानना है कि पीआरओ अभिव्यक्ति में निपुण और रचनाशील व्यक्ति होते हैं। लेकिन पीआरओ का स्वयं यह मानना है कि इस क्षेत्र में दबाव के समय सही निर्णय लेने की क्षमता बहुत जरूरी है।  एक बेहतर पीआरओ होने के नाते उसे नए-नए और अन्य कंपनियों से मजबूत रिलेशनशिप बनाने के तरीके आने चाहिए। क्रिएटिव विचार, प्रेजेंस ऑफ माइंड, डायनेमिक पर्सनेलिटी तथा इंग्लिश व प्रादेशिक भाषा का ज्ञान   उसे अवश्य होना चाहिए।

पब्लिक रिलेशन ऑफिसर को उस प्रतिष्ठान के प्रति समर्पित होना चाहिए जिससे वह संबद्ध होता है। उसके लिए कार्यालय का बंधा-बंधाया समय कोई महत्व नहीं रखता।  
उसका हर क्षण   उसके प्रतिष्ठान की उन्नति को समर्पित होता है। पीआरओ का संयमशील, शांत स्वभाव, दूरदर्शी, मिलनसारिता और हंसमुख होना अत्यावश्यक है।

आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक होना तो जैसे सोने पे सुहागा है।   पीआरओ को इस हद तक चुस्त-दुरुस्त होना चाहिए कि वह हर किसी तक उसके प्रतिष्ठान या हस्ती की काबिलियत पहुंचा सके। वर्तमान समय में बहुत से पत्रकारों ने बदलाव के विकल्प के रूप में पब्लिक रिलेशन के कार्य को अपनाया है। बड़ी संख्या में स्नातक ऐसे हैं, जो पत्रकारिता के लिए निकलते हैं परंतु उन्हें पब्लिक रिलेशन में अच्छी सफलता मिल जाती है। 
किसी भी विषय से स्नातक करने के उपरांत आप मास कम्युनिकेशन/पब्लिक रिलेशन/मैनेजमेंट या एडवरटाइजिंग में मास्टर डिग्री या डिप्लोमा कोर्स कर इस क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं। उक्त पाठ्यक्रम करने के उपरांत आप पब्लिक रिलेशन/कॉर्पोरेट कम्युनिकेशन/कॉर्पोरेट अफेयर्स/बड़ी कंपनियों के एक्सटर्नल अफेयर्स डिपार्टमेंट में स्वतंत्र रूप से पब्लिक रिलेशन कंसलटेंट का काम कर सकते हैं।
इसके अलावा विभिन्न सरकारी एजेंसियों, सेल्स, मैनेजमेंट, कंसल्टेंट ऑर्गेनाइजेशन, ट्रेवल एंड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन, इवेंट मैनेजमेंट तथा बड़े एनजीओ आदि में भी पब्लिक रिलेशन ऑफिसर या कंसल्टेंट के रूप   में कार्य कर इस क्षेत्र में शिखर पर पहुंच सकते हैं। पब्लिक रिलेशन संबंधी ज्यादातर पाठ्यक्रम पत्रकारिता या जनसंचार संस्थानों द्वारा भी संचालित किए जाते हैं।

पाठ्यक्रम संबंधी कार्य के अतिरिक्त पब्लिक रिलेशन प्रतिष्ठानों में व्यावहारिक अनुभव या प्रशिक्षण भी महत्वपूर्ण होता है। पब्लिक रिलेशन से जुड़े पाठ्यक्रमों में मीडिया ऑफ पब्लिक रिलेशंस, प्रोडक्शन एंड मीडिया कम्युनिकेशन आदि प्रमुख घटक   हैं। आमतौर पर इन पाठ्यक्रमों की अवधि एक से दो वर्ष के बीच होती है। पब्लिक रिलेशन ऑफिसर के लिए पाठ्यक्रम से ज्यादा उसके अपने अनुभव महत्व रखते हैं। उसे मीडिया के तौर-तरीकों की पूरी जानकारी होनी चाहिए।
 
#copy @webdunia

आज क्लास में PRO से सम्बंधित जानकारी मिली। जो खुद एक PRO टीचर ने दी। वो खुद भी राजस्थान सरकार के PRO है। PRO में पोस्ट कम होती है लेकिन वाकई, जिंदगी बदल जाती है। मेरा जॉर्नलिस्ट बनने से ज्यादा सपना PRO बनने का है। मैं नारायण सेवा संस्थान उदयपुर में 1 मंथ PRO रह चुका हूं। बस कार्य को उस वक्त बखूबी समझ नही पाया। मुझे लगता था कि PRO मतलब संस्थान की खबरे बनाना ही है। लेकिन PRO तो संस्थान का एक आधार है।

Wednesday, 23 August 2017

23 aug. Again college , Again " wo din'

आज जैसे ही अपने सहपाठियों के साथ बारिश में नहाने का मौका मिला तो मुझे आज से 3 साल पहले का वक्त याद आ गया जब पेसिफिक यूनिवर्सिटी उदयपुर की प्राचीर पर फर्स्ट सेम के सभी स्टूडेंट बारिश में जमकर थिरके। चाहे वो लड़के हो या लड़कियां।
ऐसा ही मोमेंट आज आया। मैं जब पेसिफिक से ग्रैजुएट कर बाहर निकला तो विश्वास नही था कि शायद अब कोई कभी कॉलेज के ऐसे भव्य क्षण आएंगे, पर वो आये। आज मेरा कॉलेज में 2nd डे था, जिसमे मेने 3 नए दोस्तों को पाया। दिव्या, गौरव, और तनु। हालांकि तनु से मैं पिछली क्लास में मिल चुका था पर आज हम इतने क्लोज हुए। आज के कुछ एपिक मोमेंट्स - following 
* वो नई क्लास जो घर के बाथरूम से भी छोटी है  , जिसमे ओनली 4 सीट।
* वो गौरव के कुछ मारवाड़ी शब्दों पर खिलखिलाहट जैसे अटा, लकीटी 
* वो क्लास के बाद पार्किंग में बॉल से खेलना।
* वो तनु & मेरा बारिश में नहाना
* मूसलाधार बारिश में ही विहिकल से घर के लिए निकलना
* एक दूसरे की गाड़ी से for fun पानी के फुवारों के छींटे मारना
* और फिर यूनिवर्सिटी के गेट पर बारिश के पानी मे आधी डूब चुकी गाड़ी का बन्द हो जाना।
* पत्रकारों द्वारा तत्काल हमारी पिक लेना 
*  दिव्या की गाड़ी को बमुश्किल डिवाइडर तक लाना।
* फिर तनु की पानी के बीच मे से स्कूटी को निकालना।
* पानी के बीच सेल्फी लेना
* सेल्फी लेते वक्त मेरा पेर फिसल जाना और पानी मे गिर पड़ना।
* grp फ़ोटो के लिए किसी बन्दे को मोबाइल थमाना ओर फिर उसको मोबाइल में करंट आना 
* फिर रोड़ पर दिव्या का गौरव से मेरे बारे में पूछना की वो कहाँ है और गौरव का तत्काल जवाब देना " वो रहा तेरे बगल में ' 
* सर्दी से मेरे हाथ कंपकंपना 



Tuesday, 22 August 2017

22 aug. Triple talaq

आज 1400 साल के भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दिन था। आज माननीय सुप्रीमकोर्ट के 5 सदस्यीय खंड पीठ ने तीन तलाक पर अपना फैसला सुनाया।
इससे पहले इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इसे असंवेधानिक करार दिया था। सुप्रीमकोर्ट में सायराबानो नाम की एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर की थी जिस पर सीजी जगदीश खेहर की अध्यक्षता में 5 धर्म के जज ने फैसला सुनाया।
सबसे पहले खेहर ने इसे असंवैधानिक नही माना पर केंद्र को इस पर कानून बनाने के लिए कहते हुए 6 माह के लिये इस पर बैन लगा दिया। जिसका समर्थन मुस्लिम जज ने भी किया पर शेष 3 जज ने इसका समर्थन नही किया और इसे असंवैधानिक करार देते हुए इस पर बैन लगा दिया। और फैसला 3-2 से पारित हो गया।
इससे पहले tv चॅनेल्स ओर सोशल मीडिया पर ट्रिपल तलाक पर जमकर बहस हो रही थी। जमकर ट्वीट हो रहे थे। जमकर विरोध भी हो रहा था। फैसला आने पर तो विचारो की ऐसी नदी बही की हर कोई उसमे डुबकी लगाने को तैयार हो गया।
मेने खुद ने करीबन 100 ट्वीट तो कर ही दिए होंगे।
बाकी फेसबुक और बाकी अन्य मीडिया मैं उपयोग नही कर रहा हूँ। क्योंकि पारू से नफरती झगड़ा हो गया।

मौलवी ओर अन्य कट्टर मुस्लिमों ने इसका विरोध किया पर अन्य धर्म के लोगो का इस पर मजे लेने को वो पचा नही पा रहै है। उनका कहना है कि याचिकाकर्ता मुस्लिम और फैसला कोर्ट का तो फिर सारा श्रेय मोदी को क्यों जा रहा है। bjp इस मूददे पर राजनीति कर रह है।
जी हां। bjp राजनीति कर रही है या फिर वाकई इस देश से कुरूतियों को बाहर निकालने की कोशिस, बात अलग है पर ये सच है कि मोदी इसके खिलाफ शुरू से ही थे।
पहली बार ये मुद्दा उत्तरप्रदेश चुनाव के वक्त उठा जब मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के वोट पाने के लिए ट्रिपल तलाक का सहारा लिया पर धीरे धीरे इसने ऐसे जड़े जमाई की अब मुद्दा कम वोटबैंक ज्यादा बन गया। हर पार्टी इसके समर्थन में खड़ी हो गई।
मौलवी जी हलाला के मजे ले रहे थे, उनकी दुकान भी बंद हो गई। लोगो को आशा है कि अब केंद्र सरकार यूनिफार्म सिविल कोड ओर हलाला प्रथा को भी बंद करेगी या इस पर कानून बनाएगी।
वाकई समाज मे जो प्रथाएँ है जिनको परंपराओं का नाम दिया गया है वो बंद होनी चाहिए। सती प्रथा ओर दहेज प्रथा पर रोक भी लगी, विरोध भी हुआ पर समाज मे क्रांति आई। बेटी को बेटे के बराबर लाने वाला कानून आया, समाज मे जागरूकता आई। जब हिन्दू अपने धर्म के कानूनों में सुधार कर सकता है तो क्यो न मुस्लिम कर सकते है। जबकि 22 मुस्लिम देशों में एक साथ ट्रिपल तलाक बेन है।
कुरान शरीफ में ऐसा कहि भी नही लिखा कि एक साथ तीन तलाक दिया जा सकता है। नियम था हर माह एक बार तलाक। सो तीसरे महीने में तीन तलाक हो जाएगा।
मौलवी ये नही समझते की बेचारी ओरतों का क्या हो जाता है तीन तलाक के बाद। सड़क पर रोटी बिलखती राह जाती है। व्हाट्सएप्प ओर सोशल मीडिया पर क्या तीन तलाक लिख देने से तलाक हो जाता है??
अचम्भे वाली बात ये रही कि एक महिला ने मौलवी के पास जाकर कहती है कि मेरे पति ने सपने में 3 बार तलाक दे दिया तो मौलवी ने कहा पलटकर अपने पति के पास मत जाना, क्योंकि तुम्हारा तलाक हो चुका है। और यही मौलवी हलाला के जरिये अपनी हवस को पूरी करते है। अपनी दरकियानुसी सोच के जरिये ये पुरानी परंपराओं में ही जीना पसंद करेंगे। हर समाज, हर तबके ओर हर धर्म ने वक्त के साथ बदलाव किए है पर ये नही करेंगे।
खैर, आज मुस्लिम महिलाओं की जीत हुई। उनको आजादी मिली। अब कानून भी बन जाये तो असली जीत होगी।

Monday, 21 August 2017

21 Aug 2017 communication

ये 2014 के इन्ही दिनो की बात थी जब मैने कम्युनिकेशन वर्ड को पहली बार अच्छे से समझा। वो निवेदिता mam का क्लास पीरियड आता था। निवेदिता mam ने संचार शब्द को हमे इतना अच्छे से पढ़ाया था कि मैं आज भी नही भूल पाया। उनकी टीचिंग शैली के तो सब प्रशंषक है। आज भी मेने उनसे फ़ोन पर बात की थी ये जानने के लिए की मुझे mjmc करने के लिए PR स्ट्रीम जॉइन करना चाहिए या फिर जर्नलिज्म। उनकी राय थी कि मैं PR क्षेत्र में ही अपना करियर बनाऊ।
आज मेने इसी PR की पहली क्लास जॉइन की। राजस्थान विश्विद्यालय। जनसंचार विभाग। ऋचा मेम।
ऋचा मेंम को देखते ही मुझे निवेदिता मेंम की याद आ गई। बिल्कुल उन्ही की तरह उनका ड्रेस कोड। उन्ही की तरह भाषा शैली। उन्ही की तरह उनका हर शब्द को जोर देकर बोलना। उन्ही कि तरह हर शब्द को खोलकर स्टूडेंट को समझाना।
आज ऋचा मेंम ने उन्ही की तरह कॉम्युनिकेशन विषय पर चर्चा की। क्लास में 3 ही स्टूडेंट थे। मैं, तनु & किशोर।
क्योकि किसी ने PR में इंटरेस्ट नही दिखाया।
चलो कोई बात नही !
मैं कॉम्युनिकेशन के बारे में पहले से जानता था।
बेहिचक बता दिया कि एक पक्ष से दूसरे पक्ष की ओर कोई सूचना, योजना, आईडिया का किसी माध्यम से या बिना माध्यम पहुंचाना संचार है।
हम अगर मन मे बात कर रहे है तो वो भी एक संचार है।
भगवान से कुछ मांग रहे है तो वो भी एक संचार है।
घड़ी की टिक टिक करती सुइयां भी संचार का अंग है।
सूरज के डूबने या चलने को भी संचार कहेंगे।
ट्रैफिक लाइट भी संचार है।
ओर यदि संचार को एक व्यक्ति एक जन समूह तक किसी माध्यम से पहुंचता है तो वो जन संचार या मास कम्युनिकेशन कहलाता है।

Sunday, 20 August 2017

20 Aug 2017 - सीरियल

#सीरियल  - जरूरी काम छोड़ कर देखते थे

भारतीय टेलीव‌िजन भी बहुत ही उन्नत रहा है. भले यह अमेरिकी टीवी धारावाहिकों या ब्रिटेन की टीवी धारावाहिकों की तुलना में एकदम अलग हो. पर इससे बिल्कुल यह आशय नहीं कि भारत के टीवी सीरियल कमतर रहे हैं.

बीते कुछ वर्षों में पश्चिमी टीवी के देखादेखी भले इन दिनों टीवी धारावाहिकों के देखने वाले उतने जोशीले न रह गए हों, पर इसी देश में ऐसे दौर रहे हैं जब धारावाहिक के समय लोग जरूरी कामों को छोड़ आते थे.

हमारे ठीक ऊपर की पीढ़ी याद करती है, जब महेंद्र कपूर की बुलंद आवाज "महा...आ...भारत" कानों पड़ती थी तो लोग जो कुछ कर रहे होते थे वहीं छोड़कर टीवी के पास भागे आते थे.

यही आलम कुछ साल पहले घर की औरतों का था जब 'बालिका बधू' शुरू होता था. भारतीय टीवी सीरियल के समृद्ध इतिहास में 'हम लोग', 'बुनियाद', 'ब्योमकेश बख्‍शी', 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने', 'नीम का पेड़', 'बिक्रम बैलात', 'अलिफ लैला', 'मालगुडी डेज', 'भारत एक खोज', 'परमवीर चक्र', 'चित्रहार', 'रंगोली' से लेकर 'भाभी जी घर पर हैं', 'बिग बॉस' और 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल शर्मा' तक का सुरूर चढ़ता-उतरता रहा है.

भारत एक खोज : दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक को हिंदी सिनेमा के सर्वोच्‍च सम्‍मान दादा साहेब फाल्‍के पुरस्‍कार से सम्‍मानित श्‍याम बेनेगल ने बनाया था। यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की किताब भारत एक खोज (Discovery of India) पर आधारित था। इस सीरियल का मूल प्रसारण 1988 से किया गया और यह दूरदर्शन पर काफी लोकप्रिय भी रहा।

चित्रहार: दुनिया में टेलीविजन इतिहास का यह सबसे लंबा प्रसारित होने वाला प्रोग्राम था। यह सन् 1960 के दशक में शुरू हुआ था और 1970 के दशक तक आते-आते लोकप्रियता के चरम पर पहुंच गया। हर शुक्रवार को प्राइम टाइम में तकरीबन 30 मिनिट तक चलने वाले इस कार्यक्रम में बॉलीवुड के नये पुराने गीत बजाए जाते थे। एक दौर में जबकि भारत में रेडियो अपनी लोकप्रियता के चरम पर था तब गीतों को उनके ऑडियो सहित वीडियो फॉर्म में सिनेमा के अलावा टीवी पर देखना नया अनुभव था। चित्रहार आज भी चल रहा है।

बुनियाद : भारत में टेलीविजन आने के शुरुआती दौर में बुनियाद सीरियल ने भी अपने दर्शकों के बीच खासी जगह बनाई। यह सीरियल भी हम लोग सीरियल के समकालीन ही था। इसे 1986 में पहली बार दूरदर्शन पर ही प्रसारित किया गया। यह भारत-पाकिस्‍तान विभाजन त्रासदी पर आधारित था। इसे रमेश सिप्‍पी और ज्‍योति ने निर्देशित किया। इस नाटक की लोकप्रियता इतनी थी कि इसे सालों बाद कई निजी चैनलों ने भी ऑन एयर किया था।


हम लोग : यह दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाल पहला डेली सोप था। मध्‍य और निम्‍नवर्गीय परिवार के जीवन के रोजमर्रा के संघर्षों और उम्‍मीदों को इसमें दर्शाया गया था। इस सीरियल ने अपनी लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। 7 जुलाई 1984 को इसे पहली बार दूरदर्शन पर टेलीकास्‍ट किया गया। 156 ऐपिसोड में चले इस सीरियल को मनोहर श्‍याम जोशी ने लिखा था।

रामायण : सन् 1987 से लेकर 1988 तक दूरदर्शन पर प्रसारित इस धारावाहिक में पहली बार जनता ने अपने आस्‍था के प्रतीक श्री राम को छोटे पर्दे पर जीवंत देखा। रामानंद सागर द्वारा निर्देशित इस सीरियल की लोकप्रियता की भी किसी से तुलना नहीं हो सकी। दरअसल, उस दौर में जबकि भारत में टेलीविजन चंद घरों में ही पहुंचा था और रामचरितमानस और वाल्‍मिक रामायण मंदिरों, घरों और गांव की चौपालों में आस्‍था और श्रद्धा के साथ गाई जाती थी, ऐसे दौर में रामायण का पर्दे पर आकार लेना लोगों के लिए न केवल कौतुहल था बल्कि अपनी भक्ति के आराध्‍य का जीवंत होना ही था। अरुण गोविल की लोकप्रियता राम के रूप में आज भी प्रासंगिक है।रामानंद सागर की प्रस्तुति रामायण देश का पहला टीवी धारावाहिक था, जिसने आमजन की टीवी में आस्‍था जगा दी. इस धारावाहिक को देखते वक्‍त लोग खुश-दुखी होते थे.


रामायण के कुछ-कुछ एपिसोड इतने मार्मिक हैं कि लोग देखने के घंटे-घंटे भर बाद तक आंसू बहाते रहे.

भारत के लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों के बारे में जब कभी लिखा-पढ़ा जाएगा तुलसीदास लिखित रामचरित मानस का टीवी रूपांतर प्रस्तु‌तिकरण 'रामायण' नाम पहली पंक्ति में आएगा.

हमसे ठीक ऊपर की पीढ़ि के लोग बताते हैं कि रविवार सुबह 9:30 का जैसे लोगों को सोमवार से ही इंतजार रहता था. 78 कड़ियों वाले इस धारावाहिक ने दूरदर्शन को लाखों रुपयों का मुनाफा भी दिया.

25 जनवरी 1987 से 31 जुलाई 1988 हर रविवार लोग जहां टीवी दिखती थी वहीं चिपक जाते थे. इसके प्रभाव इतना गहरा था कि इस टीवी सीरियल के पोस्टर को लोग अपने घरों में लगाकर पूजा करने लगे थे.

जो लोग उन दिनों बड़े हो रहे थे उनके मन में प्रभु राम का नाम आने वही छवि सामने आ जाती थी जो सीरियल में राम का किरदार था.

इस धार्मिक सीरियल ने टीवी को अरुण गोविल (राम), दीपिका (सीता), दारासिंह (हनुमान), सुनील लाहिरी (लक्ष्मण), ललिता पवार (मंथरा), अरविंद त्रिवेदी (रावण) जैसे कलाकार दिए.

महाभारत: 2 अक्‍टूबर 1988 को पहली बार प्रसारित हुए महाभारत ने भारतीय जनमानस की आत्‍मा को छू लिया। देश की जनता ने केवल चंद पन्‍नों में दर्ज अपनी आस्‍था की किताब और उसके महाविशाल कथानक को पहली बार टीवी नाम के डिब्‍बे में देखा। श्री कृष्‍ण, भीष्‍म, भीम, कुंति, द्रौपदी और श्री कृष्‍ण के चरित्र को टीवी पर देखकर पूरा देश मानों टीवी से चिपक जाता था। निर्माता बीआर चोपड़ा और निर्देशक रविचोपड़ा का यह सीरियल भारतीय टेलीविजन का इतिहास का सबसे लो‍कप्रिय सीरियल बन गया। यह पूरे दो साल चला। यह 24 जून 1990 तक प्रसारित किया गया। महाभारत का प्रत्‍येक ऐपिसोड 45 मिनिट का हुआ करता था और यह सप्‍ताह में केवल एक दिन, यानी रविवार को दिखाया जाता था। महाभारत की लोकप्रियता इतनी थी कि इसके शुरू होते ही शहरों की गलियां, मोहल्‍ले और महानगरों की कॉलोनियां सन्‍नाटे में डूब जाती थी। इस धारावाहिक जितनी लोकप्रियता, भारत में किसी भी धारावाहिक को नहीं मिली।

भारत में महाभारत आज तक सबसे अधिक उत्साह के साथ देखा जाने वाला टीवी सीरियल माना जाता है. आज भी लोग ढूंढ-ढूंढ कर इसके एपिसोड देखते हैं. यूट्यूब पर इसके एक-एक एपिसोड लाखों-लाखों लोगों देखा है, जैसे- एपिसोड 49, 50, 51, 52, 53, 54 वाले 4 घंटे से अधिक वाले वीडियो को अभी तक 1,397,859 लोगों ने देखा है.

इस धारावाहिक को इस बात का भी श्रेय जाता है कि इसने टीवी धारावाहिकों में भारतीय लोगों का विश्वास जगाया. इसी धारावाहिक एक भारतीय टीवी को एक बड़ा दर्शक वर्ग दिया, जिस पर आजतक काम किया जा रहा है.

इस धारावाहिक प्रमुख आकर्षण इस महाकाव्य में भारतीय लोगों का विश्वास है. इसे महर्षि वेदव्यास ने लिखा है. टीवी के दुनिया के बड़े नाम बीआर चोपड़ा ने इसका निर्माण किया था, उनके बेटे रवि चोपड़ा ने इसका निर्देशन किया.

इसके कुल 94 एपिसोड, 2 अक्टूबर 1988 से लेकर 24 जून 1990 के बीच में प्रसारित हुए.

इस टीवी सीरियल ने भारतीय कलाकार समाज को फिरोज खान, गजेन्द्र सिंह चौहान, मुकेश खन्ना, रोनित रॉय, पुनीत इस्सर, पंकज धीर, सुरंद्र पाल, नितीश भारद्वाज, चेतन हंसराज, गुफी पेंटल, उमाशंकर, आर्यन वैद्य, किरण करमरकर, हर्षद चोपड़ा जैसे नये प्रतिभाशाली चेहरे दिए, जो बाद में खूब टीवी तो टीवी सिनेमा में भी खूब मशहूर हुए. साल 2013 में एक बार फिर से इस धारावाहि को जीवित करने की कोशिश की लेकिन यह वैसा प्रभाव नहीं जगा पाया
भारत के दोनों धार्मिक ग्रंथों के टीवी सीरियलों के बद लेखक देवकी नंदन खत्री की काल्पनिक कहानी ने लोगों को खूब खींचा. नौगढ़-विजयगढ़ की टकरार और एक राजकुमार व मुख्य किरदार चंद्रकाता के प्यार को देखकर लोगों को कहानी अपने बीच की लगी.

चंद्राकांता उपन्यास के टीवीकरण का प्रसारण  4 मार्च, 1994 को शुरू हुआ. खास बात ये कि नीरजा गुलेरी के निर्देशन ने उन्हें मूल लेखक देवकी नंदन खत्री से भी ऊपर स्‍थान दिला था. इसके करीब 130 एपिसोड के बाद यह बंद हुआ. 

इस सीरियल में क्रूर सिंह का अभिनय करने वाले अखिलेश मिश्र को तो बाद में बॉलीवुड ने हाथों-हाथ लिया. उन्होंने 100 से अध‌िक फिल्मों का काम किया प्रकाश झा कि फिल्मों अपहरण, राजनीति आदि में उनके किरदार बहुत सराहा भी गया.

एक और सितारा इस सीरियल में था, जो अब लोगों का चहेता बना हुआ है, उसका नाम है इरफान खान.

महाभारत और रामायण जितना तो नहीं पर उसी के आसपास के दर्शक इसके भी रहे. लोगों को सीरियल देखने के लिए बड़ी बेसब्री से रविवार की सुबह का इंतजार रहता था.


महाभारत, रामायण, चंद्रकांता जैसा जादू बाद के दिनों अगर कोई टीवी सीरियल कर पाया तो वह है, शक्तिमान. इसका ऐसा प्रभाव हुआ कई लड़कों ने अपनी जान दे दी. यह ऐसा टीवी सीरियल रहा जिसके प्रसारण समय इसलिए बदलना पड़ा कि बच्चे स्कूल जाने से मना कर देते थे. या स्कूल से भाग जाते थे.

महाभारत में भीष्म का किरदार करते हुए मुकेश खन्ना को उतनी लोकप्रियता नहीं मिली थी, जितनी शक्तिमान ने दिलाई. इन्हीं के साथ गुरु द्रोणाचार्य बनकर जितना सुरेंद्र पाल लोगों को नहीं रिझा पाए उससे ज्यादा उनका खौंफ तमराज किलविश के रूप में लोगों तक पहुंचा.

शक्तिमान को भारत का पहला सुपरहीरो भी कहा जाता था. यह एक खास तरह से हाथ घुमाकर आसमान में उड़ जाया करता था. कुछ बच्चों ने भी ऐसा करने की कोशिश की. कुछ बच्चों को लगा कि वह छत से कूदेंगे तो शक्तिमान उन्हें बचाने आएगा.

सीरियल ने 400 एपिसोड सफलतापूर्वक पूरे किए और टीवी की दुनिया में छा गया. 27 सितंबर, 1997 से शुरू होकर यह

ज्यादातर सबके पास कोई न कोई ऐतिहासिक ग्रंथ या चरित्र थे. क्योंकि तब इनके खूब चलन थे. इनमें खास बात यह कि जिस तरह महाभारत कूटनीति पर आधारित और भारत में मशहूर हुआ उसी तरह चाणक्य की कूटनीति वाला धारावाहिक भी पसंद आया.

अहम बात ये कि इसके निर्देशक चंद्र प्रकाश द्वीवेदी एक शानदार निर्देशक हैं. उनके कहानी कहने के तरीके से लोग खूब प्रभावित हुए. यथार्थ पर आधारित यह धारवाहिक 8 सिंबर, 1991 को शुरू हुआ और करीब 48 ऐपिसोड के बाद 9 अगस्त, 1992 को खत्म हुआ.

जंगल-जंगल बात चली पता चला है, चड्ढी पहन कर फूल खिला है पता चला है" इस गाने के साथ रविवार की दोपहर 12 बजे जब मोगली की कहानी शुरू होती थी तब बच्चे तो क्या बड़े-बुजुर्ग भी अपनी-अपनी खाट टीवी की ओर कर लेते थे.

यह एक जापानी टीवी सीरियल है जो 2 अक्टूबर 1989 में शुरू हुआ. वहां इसका नाम "जंगुरू बुक्कू शोनेन मोंगरी" था. जुलाई 1993 दूरदर्शन पर "द जंगल बुक" नाम से इसकी शुरुआत हुई.
यह मोगली नाम के एक मोगली बच्चे की कहानी है, जो जंगल में ही बड़ा हो रहा है जंगली जानवरों से बातें करता है. उन्हीं की तरह उछलता कूदता है. इससे पहले के सीरियल में इतनी टेक्नॉलोजी नहीं थी.

इस सीरियल ने भारत को एक आयाम दिया, जिसका नतीजा है कि आज बच्चों पर केंद्रित बीसियों चैनल चल रहे हैं, जो सुबह से शाम तक बच्चों के लिए ही कार्यक्रम चलाते हैं और इनकी अच्छी-खासी पहचान भी है. हाल ही जब इसकी फिल्म रिलीज हुई तब भी भारत में खूब मशहूर हुई.

भारतीय टीवी में क्रांति आई थी. एक साथ कई चैनल खुले थे. सबमें कुछ नया करने की होड़ मची हुई थी. लोग किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार थे. इसी बीच 3 जुलाई, 2000 को ठीक उसी दिन जिस 'कौन बनेगा करोड़पति' का पहला एपिसोड दिखाया गया, एक धारावाहिक और आया.

शुरुआती ऐपिसोड में लोगों ने लोग इसे भी बाकी सीरियलों की तरह देखते रहे. लेकिन बालाजी टेलीफिल्म्स के इस सीरियल का प्रसारण जैसे बढ़ता गया, दर्शकों के सिर पर चढ़ता गया.
असर इतना कि इस टीवी सीरियल ने भारत को एक शिक्षा मंत्री दे दिया.

सास-बहू के रिश्तों पर आधारित यह सीरियल मध्यवर्गीय शहरी परिवार की रोजमर्रा जिंदगी की कहानी थी. वर्तमान देश की कपड़ा मंत्री व पूर्व शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी इसमें मुख्य बहू की भूमिका में थी.

इसका आखिरी एपिसोड 6 नवंबर, 2000 को प्रसारित हुआ. स्मृति के अलावा इसने सुधीर दलवी, सुधा शिवपुरी, शक्ति सिंह, अपरा मेहता, अमर उपाध्याय, जीतें लालवानी और राकेश पॉल को भी टीवी में पहचान दिलाई.

टीवी धारावाहिकों के मशहूर हुए जब जमाने गुजर गए, सालों बाद जब जो अलख महाभारत-रामायण ने लोगों में जलाई थी टीवी देखने की वह मद्धम पड़ने लगी, तमाम चैनल एक साथ खुल गए, सुबह-शाम हर समय धरावाहिक आने लगे तो बालिका बधू ने एक नई मिसाल पेश की.

इस धारावाहिक में जिस दिन मुख्य किरदार आनंदी को गोली लगी और ऐसा लगा कि शायद वह मर जाएगी तो तमाम घरों में उस दिन चूल्हे नहीं जले. तमाम-सास बहू की कहानियों के बीच यह एक ऐसा सीरियल प्रसा‌रित हुआ‌ जिसने भारतीय टीवी को नये सिरे से परिभाषित किया.

21 जुलाई 2008 से शुरू हुआ यह सीरियल इसी साल 31 2016 को बंद हुआ. यह भारतीय टीवी सीरियल का सबसे लंबे दिनों तक चलने वाला सीरियल रहा. आप इस बात से इस सीरिलय की लंबाई का अंदाजा लगा लीजिए कि मुख्य किरार आनंदी 3 बार बदली गईं.

सबसे पहले अविका गौर ने इस किरदार को खूब जिया. इसी साल दुनिया छोड़कर गईं प्रत्यूषा बनर्जी और आखिर तक इसके साथ रहीं तोरल रासपुत्र आनंदी बनीं.



या तो महाभारत भारत की गलियां शांत कर देता था, आने-जाने वाले जहां टीवी पाते थे वहीं ठहर जाते थे, या फिर कौन बनेगा करोड़पति यह काम कर पाया. भारतीय टीवी में यह अपने आप में अनोखा टीवी कार्यक्रम था.

इससे पहले टीवी पर इस तरह के शो नहीं आते थे. इसे भारत का पहला टीवी गेम शो माना जाता है. फिल्मों की दुनिया में सबसे बड़ा नाम होने के बाद जब अमिताभ फिसले और सड़क पर आने की नौबत आ गई तब उन्होंने टीवी का सहारा लिया.
साल 2000 में कौन बनेगा करोड़पति ने अमिताभ बच्चन को नई उचाइयां दीं. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा आपको इस बात से भी लगा सकते हैं कि अलग-अलग संस्करण आने वाले सालों में भी होने वाले हैं.

3 जुलाई, 2000 को पहला और इसके 8वें संस्करण का प्रसारण नवंबर 16, 2014 को हुआ था. इसके 9वें संस्करण के लिए भी तैयारियां जारी हैं.




आमतौर पर मेरा स्वभाव tv पर दिखाए जाने वाले सीरियल विरोधी रहा है। सीरियल ! चाहे कोई से भी सीरियल हो, मुझे नफरत सी होती है। मेने कभी भी कोई सीरियल देखने की इच्छा जाहिर नही की। जब भी tv देखता था तो फिल्मी चैनल, या फिर म्यूजिक चैनल ओर इन सब से ज्यादा प्राथमिकता मैं न्यूज़ चैनल को देता था।
जब हमारे घर मे एक ब्लैक वाइट tv का दौर था, तब नेशनल चैनल पर कुछ प्रख्यात सीरियल आया करते थे जिसका मेरे परिवार को काफी चस्का था'। वो हुए न हमारे' आप बीती' ' हवाएं'  'शक्तिमान' 'कुंती' ' मेहर' ' तलाक क्यों'  आदि। बहुत से तो मैं भूल भी गया। करमचंद्र, सरस्वती चंद्र, पवित्र बंधन, ।  महाभारत, रामायण की तो पूछो ही मत। ये तो गजब का विख्यात हुआ था। जिसके घर मे tv थी, वो घर भर जाता था जब महाभारत और रामायण आती थी। हमारे घर मे खुद भीड़ लग जाती थी। क्योंकि शुरुवाती tv यही थी। तब मैं ये सीरियल जरूर मैं देखा करता था। फिर 2007 में रंगीन tv की दुनिया मे घुस गए और सीरियल बदल गए। कसौटी जिंदगी की,' कुमकुम' ,बहने' कभी सास भी बहु थी,' यहां मैं घर घर खेली', दिया बाती, वगेरा।
मैं सीरियल का विरोध इसलिए करता था क्योंकि ये जहर फैलाते है। देवरानी जेठानी, सास- बहु को लड़ने का पैंतरा दिखाते है। 😀😀
sub tv के प्रोग्राम मुझे काफी अच्छे लगते है। हास्य धारावाहिकों के लिए जाने जाने वाले इस चैनल पर लोगों की रुचि बढ़ी है। अब सीरियल सास बहू के सीमित न होकर हास्य क्षेत्र में प्रभाव बाधा है। 2009 से एक सीरियल ने तो ताबड़तोड़ कमाई की जो अब तक फ्लॉप नही हो रहा। आप जानते ही होंगे " तारक मेहता का उल्टा चश्मा' जो झेठा लाल के अनूठे अंदाज के कारण सुप्रसिद्ध हुआ। इसी तरह इसी चैनल पर एक सीरियल आता है - गुटरगुं । जो हिन्दुस्तान के धारावाहिक इतिहास का पहला मौन धारावाहिक है।
सोनी tv पर सर्वाधिक चलने वाला धारावाहिक- " दया दरवाजा तोड़' 😀😀 याद आया?? ... CID ।
फिर दौर शुरू हुआ रियल सीरियल का। बिगबॉस, झलक दिखला जा, सारेगामा, did लिटिल चेम्स, इंडिया गोटज टेलेंट,  कपिल शर्मा, आमिर खान का सत्यमेव जयते, कोन बनेगा करोड़पति ये रियल सीरियल है।
बच्चों के सीरियल में छोटा भीम, सोन परी, शक्तिमान, बाल वीर भी काफी ऊपर है।
क्राइम पेट्रोल, देवो के देव महादेव, हातिम, नव्या, प्यार का दर्द है मीठा- मीठा,  ये रिश्ता क्या कहलाता है, ये है मोहोब्बते, मन की आवाज प्रतिज्ञा, इन प्यार को क्या नाम दूँ, साथ निभाने साथिया, ससुराल गेंदा फूल,  राजा की आएगी बारात, रुक जाना नही, पुनर्विवाह, एक हज़ारों में मेरी बहना है, सावधान इंडिया, एक वीर की अरदास वीरा, भाभी जी घर पर है, व रहस्य को बढ़ावा देने वाला सीरियल नागिन भी उच्च trp पर था।
ऎतिहासिक तत्वों पर आधारित सीरियल भी लोगों को पसंद आये - जोधा अकबर, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, महाराणा प्रताप, टीपू सुल्तान, शिवाजी, चंद्रगुप्त मौर्य आदि।