आज 1400 साल के भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दिन था। आज माननीय सुप्रीमकोर्ट के 5 सदस्यीय खंड पीठ ने तीन तलाक पर अपना फैसला सुनाया।
इससे पहले इलाहाबाद हाइकोर्ट ने इसे असंवेधानिक करार दिया था। सुप्रीमकोर्ट में सायराबानो नाम की एक मुस्लिम महिला ने याचिका दायर की थी जिस पर सीजी जगदीश खेहर की अध्यक्षता में 5 धर्म के जज ने फैसला सुनाया।
सबसे पहले खेहर ने इसे असंवैधानिक नही माना पर केंद्र को इस पर कानून बनाने के लिए कहते हुए 6 माह के लिये इस पर बैन लगा दिया। जिसका समर्थन मुस्लिम जज ने भी किया पर शेष 3 जज ने इसका समर्थन नही किया और इसे असंवैधानिक करार देते हुए इस पर बैन लगा दिया। और फैसला 3-2 से पारित हो गया।
इससे पहले tv चॅनेल्स ओर सोशल मीडिया पर ट्रिपल तलाक पर जमकर बहस हो रही थी। जमकर ट्वीट हो रहे थे। जमकर विरोध भी हो रहा था। फैसला आने पर तो विचारो की ऐसी नदी बही की हर कोई उसमे डुबकी लगाने को तैयार हो गया।
मेने खुद ने करीबन 100 ट्वीट तो कर ही दिए होंगे।
बाकी फेसबुक और बाकी अन्य मीडिया मैं उपयोग नही कर रहा हूँ। क्योंकि पारू से नफरती झगड़ा हो गया।
मौलवी ओर अन्य कट्टर मुस्लिमों ने इसका विरोध किया पर अन्य धर्म के लोगो का इस पर मजे लेने को वो पचा नही पा रहै है। उनका कहना है कि याचिकाकर्ता मुस्लिम और फैसला कोर्ट का तो फिर सारा श्रेय मोदी को क्यों जा रहा है। bjp इस मूददे पर राजनीति कर रह है।
जी हां। bjp राजनीति कर रही है या फिर वाकई इस देश से कुरूतियों को बाहर निकालने की कोशिस, बात अलग है पर ये सच है कि मोदी इसके खिलाफ शुरू से ही थे।
पहली बार ये मुद्दा उत्तरप्रदेश चुनाव के वक्त उठा जब मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के वोट पाने के लिए ट्रिपल तलाक का सहारा लिया पर धीरे धीरे इसने ऐसे जड़े जमाई की अब मुद्दा कम वोटबैंक ज्यादा बन गया। हर पार्टी इसके समर्थन में खड़ी हो गई।
मौलवी जी हलाला के मजे ले रहे थे, उनकी दुकान भी बंद हो गई। लोगो को आशा है कि अब केंद्र सरकार यूनिफार्म सिविल कोड ओर हलाला प्रथा को भी बंद करेगी या इस पर कानून बनाएगी।
वाकई समाज मे जो प्रथाएँ है जिनको परंपराओं का नाम दिया गया है वो बंद होनी चाहिए। सती प्रथा ओर दहेज प्रथा पर रोक भी लगी, विरोध भी हुआ पर समाज मे क्रांति आई। बेटी को बेटे के बराबर लाने वाला कानून आया, समाज मे जागरूकता आई। जब हिन्दू अपने धर्म के कानूनों में सुधार कर सकता है तो क्यो न मुस्लिम कर सकते है। जबकि 22 मुस्लिम देशों में एक साथ ट्रिपल तलाक बेन है।
कुरान शरीफ में ऐसा कहि भी नही लिखा कि एक साथ तीन तलाक दिया जा सकता है। नियम था हर माह एक बार तलाक। सो तीसरे महीने में तीन तलाक हो जाएगा।
मौलवी ये नही समझते की बेचारी ओरतों का क्या हो जाता है तीन तलाक के बाद। सड़क पर रोटी बिलखती राह जाती है। व्हाट्सएप्प ओर सोशल मीडिया पर क्या तीन तलाक लिख देने से तलाक हो जाता है??
अचम्भे वाली बात ये रही कि एक महिला ने मौलवी के पास जाकर कहती है कि मेरे पति ने सपने में 3 बार तलाक दे दिया तो मौलवी ने कहा पलटकर अपने पति के पास मत जाना, क्योंकि तुम्हारा तलाक हो चुका है। और यही मौलवी हलाला के जरिये अपनी हवस को पूरी करते है। अपनी दरकियानुसी सोच के जरिये ये पुरानी परंपराओं में ही जीना पसंद करेंगे। हर समाज, हर तबके ओर हर धर्म ने वक्त के साथ बदलाव किए है पर ये नही करेंगे।
खैर, आज मुस्लिम महिलाओं की जीत हुई। उनको आजादी मिली। अब कानून भी बन जाये तो असली जीत होगी।
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