Thursday, 15 March 2018

विपक्षियों का महागठबंधन 2019 जीता, तो दोबारा लोकसभा चुनाव कराने होंगे


क्या विपक्षी दलों का महागठबंधन BJP के 2019 का रथ रोक पायेगा?
#जरा_ध्यान_दे 
भारत की राजनीति T -20 मैच की तरह हो गई है। कभी किसी बॉल पर सिक्स लगता है तो अगले ही पल आउट। फिर कोई बोल वाइड आती है तो कोई डॉट। भारत की राजनीति में इतना रोमांचक समय पहले भी आये होंगे पर ये अलग है। बेहद अलग है।
2019 की तैयारियां जोरों पर है। सभी पार्टियाँ अपने स्तर पर हाथ पैर आजमा रही है।
राहुल गांधी ने हाल ही मैं विपक्षी दलों को एक करने के लिए डिनर पार्टी का आयोजन किया। उसको इस बात का डर है कि अखिलेश ने सबको एक किया तो अखिलेश सर्व सम्मति से नेता घोषित हो जाएगा और राहुल का pm बनने का सपना, सपना ही रह जायेगा। ऐसे में राहुल गांधी हर संभव प्रयास करते नजर आ रहे है।
ममता मोदी से प्रारम्भ से ही नफरत कर रही है। केंद्र की कोई भी योजना बंगाल में घुस नही सकती , चाहे वो जनकल्याणकारी ही क्यों ना हो,  नफरत बताने के लिए यही काफी है।
कुछ भी हो जाये पर वो महागठबंधन का हिस्सा पहले बनेगी।
बबुआ ने तो इक्कठे करने ही शुरू कर दिए। मायावती ओर अखिलेश को up उपचुनाव की इस जीत से नई ऊर्जा मिली है।
हर चुनाव ओर उपचुनाव को देख लीजिये। बीजेपी का मत प्रतिशत बाकी अन्य दलों को शामिल करने के बाद बने मत प्रतिशत से कम है। कहा जा सकता है कि 2019 में अगर महागठबंधन बना तो बीजेपी की हार तय है।
इस जीत ने विपक्षी एकता के साथ विपक्षीयों को ये विश्वास दिला दिया कि 2019 में मोदी शाह की जोड़ी हारेगी।
ये समझ नही आता हर पार्टी ये कहते हुए मिलती है कि हम बीजेपी को रोकने के लिए कुछ भी कर सकते है, लेकिन कोई ये क्यों नही कहता कि हम देश के विकास के लिए कुछ भी कर सकते है।
अंत मे इतना ही कहूंगा कि चाहे कितने भी महागठबंधन बन जाये, दिल्ली को गठबंधन का ग भी नही पसन्द। यहां हर गठबंधन असफल रहा है, सरकारें टूटी है।
और अन्य बात यू ही नही मोदी शाह को मास्टर कम बैक खिलाड़ी कहा जाता है। मोदी को जनसमूह को अपनी और खींचना आता है। 2019 से ठीक पहले वो कुछ ऐसा कार्य कर सकते है जो सिर्फ बीजेपी को वोट देने के लिए काफी है।
तृतीय बात। कोई भी गठबंधन सफल नही रहा है। bjp ओर शिवसेना ही अच्छा उदाहरण है। हर पार्टी की अपनी अलग अलग विचार धारा है, महागठबंधन बनने की संभावनाएं कम है। सभी पार्टी एक मत पर नही आ सकती। तृणमूल ओर वाम पार्टी तो बिल्कुल नही। द्रमुक ओर अन्नाद्रमुक भी नही। tdp ओर एनसीपी भी नही। शिवसेना और कांग्रेस भी नही।
और महागठबंधन बन भी गया और विपक्ष 2019 जीत भी गए तो 2019 में ही दोबारा लोकसभा चुनाव होंगे।

Monday, 5 March 2018

चम्मू

ये मेरा खरगोश था।
5 जुलाई 2016 को निवाई शनिवार को लगने वाले मेले में इसको परचेस किया था।
हाँ उस दिन मेरी छोटी बहिन पिंकी के साथ मेला देखने गया था, तब इस पर नजर पड़ी।
मेरी बचपन से इच्छा थी कि मैं एक खरगोश पालू। इस संदर्भ मैं सोमेश भैया से भी काफी बार बात कर चूका था। मुझे खरगोश खरीदने का एक सुअवसर प्राप्त हुआ था तो मैं कैसे छोड़ सकता था।
मेने पिंकी के सामने इसको खरीदने की इच्छा जाहिर की तो वो झल्ला उठी और मुझे खींचकर ले जाने लगी।
कुछ दूरी पर जाकर मैं रुक गया। मेरा मन नही मान रहा था। मैं एनिमल लवर हूं , मेने आज तक कोई जानवर नही पाला bt आज मुझे रहा नही जा रहा था, इच्छा मन की मन मे दबी थी। इस बार मेने पिंकी को खींचा ओर उस खरगोश बेचने वाले के पास ले गया।
200 रु. के खरगोश की कीमत जैसे तैसे करके मेने 120 लगाई। और एक जूतों के डिब्बे में बंद कर ले आया। बाइक मेने चलाई ओर खरगोश के डिब्बे को पिंकी ने पीछे पकड़ा।
हम घर पर आए तो पापा ने डिब्बा खोलकर देखा। वो भी काफी गुस्सा हुए । हालांकि मेरी छोटी चाची काफी खुश हुई। बाकी मेरे छोटे भाई बहिन भी खुश हुए। उसको साथ खेलने लगे। उसको लाड करने लगे। धीरे धीरे घर मे खरगोश देखने आने वाले बच्चो की संख्या बढ़ी।
शुरुवात में उसको रखने के लिए हमारे पास कोई पर्याप्त प्रबंधन नही था। तो हमने इसको तोते के पिंजरे में रख दिया। मेरे दादाजी ने बिल्ली को पकड़ने के लिए वो पिंजरा लाये थे। बिल्ली के तो काम नही आया और इसको खरगोश का अस्थाई घर बना दिया। इसी में घास ओर रोटियां डाली जाने लगी।
मेरी मम्मी खरगोश लाने पर मुझे डांटती थी पर मन ही मन वो उसे चाहती थी।
इसका नाम सर्व सम्मति से चम्मू रखा गया। चम्मू एक बहुत प्यारी बिल्ली का नाम था जो इसके आगमन से ठीक 6 माह पूर्व चल बसी। बहुत ही नटखट बिल्ली थी। हमेशा हम 2-3 घरों में चहल पहल करती रहती थी। जब भी हम खाना खाने बैठते वो आ टपकती ओर भोजन की मांग करती। पूरे घर को परेशान करती। एक बार चाचाजी की सीढ़ियों पर वो घायल मिली।
पता नही क्यो पर वो ऐसा लग रहा था कि वो अंतिम सांसे गिन रही है। मेरे चाचा ने जैसे ही उसको पुकारा वो चल बसी। बस उसी की याद में इस खरगोश का नाम भी चम्मू रखा गया।
मेरे पास उस वक्त 450 रु. save थे। मेने इन पेसो से गावँ के ही एक मुस्लिम मिस्त्री रसीद से पिंजरे का लोहे का गेट बना लिया।
उस दिन मेरा पूरा परिवार लगा था उसका पिंजरा बनाने के लिए। पापा, मम्मी, मैं , चिंकी, कालू, अकु, ओर छोटी चाची व पिंकी। सीमेंट व ईंटो के समिश्रण से उसका घर बना दिया गया। घर के बाहर लोहे का दरवाजा बना दिया गया। अंदर बजरी के एक अलग से ब्लॉक बनाया गया। ये सब बनाने का कार्य मेरे दादाजी ने किया। और अन्ततः खरगोश को पिंजरे के अंदर दाखिल कर दिया गया।
उन दिनों में उदयपुर रहता था। मैं चला गया। बाद में चिंता रहती थी कि पता नही चमु को टाइम पे खाना मिलेगा भी की नही। पर मेरे मॉम ओर पापा ने उसका एक बेटे की तरह खयाल रखा।
पापा तो हर शाम मम्मी को चिल्लाकर कहते ' खरगोश को खाना पटक दिया क्या?'
इसी तरह स्कूल जाते वक्त मम्मी को याद दिलाकर जाते।
मेरे छोटे भाई बहिन भी उसके लिए चारा, धोब, घास कहीं से ले आते। पड़ोसी गुर्जरों के बच्चे भी मम्मी के कहने से चारा ले आते।
अंतिम दिनों में तो दादाजी भी रोज शाम निवाई से आते वक्त घास की छोटी पोटली उठा लाते। कुल मिलाकर उसे कभी खाने की समस्या नही रही। उसे कुछ ही दिनों में मेरे घर वाले दुर्बल से सबल बना दिया था।
मैं जब भी घर जाता उसे साथ मे लेकर घूमता, उसके।साथ खेलता, उसको उछालता, उसको तकिया लगाकर सोता। उसको गोद मे भरकर बाहर घूमता।
वो घर पे भी जब स्वतंत्र घूमता तो सब घर वाले उस पर नजरें रखते की कही से कोई बिल्ली या कुत्ता आकर इसको झपट ना ले।
कई बार वो बिल्ली की चपेट में आने से भी बाल बाल।बचा। एक बार tv room में था। मैं bed पर लेटा गया था और दरवाजा थोड़ा सा बंद था। एक मोटी बिल्ली ने दरवाजा ख़ोल दिया। गनीमत रही मेरी नजर पड़ गई वरना वो झपटा मार कर उसे ले जाती या घायल कर देती।
एक बार तो हमारे नजदीक रहने वाले चक्की वाले अंकल का खरगोश भी लेकर आये थे। इसका मन लगाने के लिए। पर कुछ ही पलों में दोनों झगड़ने लगे।

ऐसा नही है सिर्फ हमारी family ही चम्मू को like करती थी। सोमेश भैया जब भी घर आते ,इससे मिलते इसको उठाकर घर लेकर जाते। ओम जी ताऊजी भी इसको देखकर खुश हो जाते। विकास भैया की family भी खुश हो जाती। उनके बच्चे के लिए वो कभी कभी खरगोश मंगवाते। हम सभी होली दिवाली खरगोश के साथ फोटो खिंचवाते, पिंकी ने तो चम्मू को रक्षाबंधन पर राखी बांधकर फ़ोटो fb पर भी अपलोड किया था। कविता दी का लड़का भी उसको देखकर खुश हो जाता। उसके साथ खेलता। रिंकू दी कि बच्चे भी खरगोश देखने की जिद्द से घर तक आते। सुनीता दी की लड़की तो उससे बहुत डरती थी। वो सबका चहेता था, वो सबका प्यारा था।

कभी कभी तो एक-एक महीने हो जाते थे, कोई भी उसको उसके घर से बाहर नही निकलता था। जब मैं घर पर आता तभी वो बाहर निकलता।

एक बार हम घर वाले किसी काम मे बिजी हो गए थे, या फिर किसी दूसरे गावँ चले गए थे, तब इसको खाना डालना भूल गए थे।
दूसरे दिन पापा जब चम्मू को भोजन डालने गए तो उसने नाराज होकर खाली पड़ी कटोरी को मुँह से भर कर बाहर फेंक दिया। 😀

बहुत याद आता है वो। सच मे। धड़कनो में बस कर कहाँ चले गए मेरे चम्पू। 😪

वो अपने पैरों को उठाकर हाथ जोड़ता तो वो पल सबको बहुत अच्छा लगता। सब उसकी इस अदा को लाइक करते।
कोई उसको पिंजरे से बाहर निकलने की कोशिश करता तो उसके बड़े बड़े नाखून हथियार बनते। मैं खुद उसको उसके पीछे का भाग पकड़ के खींचता था।

खरगोश सबसे प्यारा जीव होता है। हर कोई उसको पसंद करता है। ये बात और है कि उसके गल गल से बालों से डरकर कुछ लोग उसको स्पर्श करने से डरते है। अशोक, मेरी मम्मी, ओर छोटी बहिने भी उसको स्पर्श नही करती थी।
कभी कभी मैं बेड पर लेटा उसको अपने पेट पर रख देता। वो उछल कूद करता। कभी कभी उसे जब बेड पर ज्यादा देर हो जाती तो वो नीचे कूदने का रास्ता ढूंढता। ओर जब वो कूदने में सफल हो जाता तो बहुत तेज़ भागता। जब हम उसको पकड़ने भागते तो वो ओर दूर कहीं कोने में जाकर हमको तंग करता। हम उसके पीछे पीछे भागते रहते।
जब उसको भूख लगती तो वो पिंजरा खटखटाता.. फिर मम्मी उसके लिए खाना लेकर आती।
सर्दियों में उसकी सुरक्षा के लिये बोरी बिछाई जाती व पर्दा लगाया जाता था।

ये 17 जनवरी 2018 की सुबह थी। मैं बेरोजगार था तो घर पर ही रहता था। सुबह जब मम्मी उसको खाना डालने गई तब वो बीमार से नजर आ रहा था। हमेशा की तरह आज उसने दरवाजा भी नही खटखटाया था। वो एकदम सुन्न था। वो मुड़कर देख भी नही रहा था। उसके पैर फैले हुए थे।
मम्मी ने इस बारे में मुझको अवगत किया। मेने उसको देखा तो उसको उठाकर थोड़ी देर बाहर रखा। फिर भी कुछ भी रेस्पॉन्स उसकी तरफ़ से नही मिल रहा था। मैं उसको उठाकर मेरी दादी के पास ले गया। मेरी दादी ओर बड़ी चाची ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए हमारे समीप रहने वाले अंकल के पास ले गई, जिनके पास पिछले 20 वर्षों से खरगोश था। उसने भी ध्यान न देकर बस इतना कह दिया कि बस केवल जुखाम हुआ है। मेने उसको वापस लाकर पिंजरे में रख दिया और पढ़ाई करने लग गया।
दोपहर को मुझे नींद आ गई। और सो गया। 4 बजे के करीब मम्मी ओर छोटी बहिन ने मुझे जगाया ओर बताया कि खरगोश बुरी तरह बीमार हो गया है। मेने उठकर संभाला तो पाया कि अब इसमें एक प्रतिशत भी ऊर्जा मुश्किल से बची है। मैं तुरंत बिना देर किए निवाई अस्पताल की ओर भागा। बाइक पर मेरे साथ अशोक बैठा। खरगोश को एक पोली बेग में रखकर हम तेज़ स्पीड में चले जा रहे थे।
आधी दूर पर अशोक मुझे कहता है कि इसने हिलना डुलना बंद कर दिया। मेने इस बात को दरकिनार कर बाइक चलाता रहा ।
हम चाचाजी के प्लाट पर पहुंचे जँहा दादाजी मकान का काम करवा रहे थे। मेने उनको पूरी बात बताई। उन्होंने कहा  की अस्पताल को अब बंद हो गया पर इसको एक बार बाहर निकालो।
मेने ज्यो ही उसे बाहर निकाला और जमी पर रखा तो वो 3 गुलाटी मारते हुए उसने प्राण विसर्ग कर दिए। हम सबकी आंखे खुली की खुली रह गई। लगा जैसे सांस रुक गई। हम वही पर बैठकर निशब्द हो गए। मेरी चचेरी बहिन चिंकी भी वहां आ गई और उसने भी काफी दुख व्यक्त किया।
थोड़ी देर बाद मेरे फ़ोन पर मेरे पापा भी वहां आ गए। हमने बीच राह में पड़ने वाले जंगल मे उसको गिराने की सोची, बात गिराते ही ऐसा लगा जैसे कि उसने चूं-चूं की आवाज निकाली है। हमारा मन नही मारा ओर घर ले आये। घर पर लाते ही भीड़ लग गई। सब उसके बारे में ही बात करने लग गए। पडोशी भी इकट्ठे हो गए। सबने प्लान बनाया की गिरधारी पूरा गावँ के जंगल मे इसको रख के आया जाए।
मैं जैसे ही उसको ले जाने लगा मेरी मम्मी फुट फुट कर रोने लगी। क्योंकी उसने ही इसकी सेवा की थी। उसने ही उसको पाला था। मैं तो उदयपुर था।

मैं ओर अकु मिलकर उसे बालाजी के जंगल मे छोड़ आए जँहा 2 दिन बाद फिर उसकी लाश भी नही दिखाई दी।
हमने ये गलती की की उसके शव को गाढ़ा नही। वो हमारा प्रिय था, उसे आखिर  आवारा की तरह कैसे छोड़ सकते है। खेर अब तो पश्चाताप ही रहैगा।
पता नही कोनसी बीमारी थी, पर वो चला गया। बहुत दूर ।

अंतिम पलो में मेरी भावनाएं कुछ इस प्रकार थी -
आज मेरे चम्मू की टमाटर जैसी लाल आंखे नीली क्यों पड़ी हुई है😦
आज हमेशा की तरह ये मुझे देखकर अपने कान खड़े क्यों नही कर रहा है।😦
आज ये अपने पंजो से अठखेलियाँ क्यों नही कर रहा है
आज ये मेरे पेट पर उछल कूद क्यों नही कर रहा है
पूरे घर मे उछल कूद व शरारती इसके पैर आज एक क्यों एक जगह पर स्थाई है।😓
आज इसका पिंजरा सुना क्यों है। इस पिंजरे में पड़ी रोटियां, बिस्किट, और घास अभी तक खत्म क्यों नही हुई।😒
रोज शाम की तरह इसके लिए घास लाने वाले मेरे दादाजी आज खाली हाथ क्यों आये।😟
इसके साथ खेलने वाले मेरे चचेरे छोटे भाई बहिन आज पिंजरे को क्यों नही खोल रहे।😴
10 साल से मेरी जिस माँ की आंखों में कभी आँसु नही आये( disease) वो आज फुट फुट कर क्यों रो रही है😴
मेरी जिस छोटी बहिन को इसको हाथ लगाने से डर लगता था वो आज क्यों इसको स्पर्श कर रही है
हर शाम सर्दी से सुरक्षा के लिए जो पर्दा इसके पिंजरे पर लगाया जाता था, वो आज क्यों नही लगा है।😌
वो तुम ही थे जो बिल्ली की आवाज पर डरकर मुझसे चिपक जाया करते थे।
वो तुम ही थे जो हर सुबह भूख लगते ही पिंजरा खटखटाया करते थे।
वो तुम ही थे जिसको खाने की चीज़ डालने में देरी हो जाती थी तो मुह से कटोरे को ही बाहर फेंक दिया करते थे😪😪
वो तुम ही थे जब हमारी fmly कही बाहर जाती थी तो तुमारी खैरियत के लिए जिम्मेदारी पड़ोसियों को देकर जाती थी😪
वो तुम ही थे जिसकी मेरी माँ ने विगत 558 दिन तक निस्वार्थ भाव से सेवा की
कहाँ चले गए तुम, 
आखिर क्यों ये अंखिया भीगा गए तुम 😪

Friday, 2 March 2018

sri devi

''कहते है मुजको हवा हवाई'' 
वाकई वो हवा हवाई थी जों किसी खुशबु की भाँती आई, और कब चली गइ, पता नही चला..😓😪
श्री देवी .... " मै तो सिर्फ एक ओरत हूँ जो मर्दों द्वारा बने गइ इस दुनिया में अपनी शर्तों पर जीना चाहती हूँ " ये डाइलोग हमारे जेहन में सदा रहेगा ..
देर रात तक सोया था तो आज देर सवेरे उठाना पड़ा... पहला काम डिजिटल युग में प्रवेश का .. मै अक्शर ट्विटर सुबह चलाता हूँ बाकि पुरे दिन समय नहीं निकाल पाता हूँ ... पता चला श्री देवी ट्रेंड हो रही है .. लगा की कोई न्यू मूवी का ट्रेलर आया होगा.. मेने ध्यान नही दिया और राजनेतिक ट्विट पर इंटरेस्ट लेने लगा पर क्या कोई हो सकता है ?? जो इस छरहरी काया वाली इस मशहूर अदाकारा पर ट्विट ना करे...मै स्थब्ध सा रह गया .. आँखे खुली की खुली रह गइ .. एक पल के लिए जेसे समय रुक गया .. ये सुनकर की एक चांदनी जाते जाते पुरे देश में अँधेरा कर गई .. ये वाकई बहुत दुःख का पल था .. मुझे याद है जब मै पांच या छः साल का था तब  डी डी नेशनल पर हर रविवार शाम चार बजे बॉलीवुड की फिल्म्स आती थी, तब श्री देवी की नागिन, नगीना , नजराना ,जुली ,जुदाई  फिल्म्स के लिए पूरा हॉल भर जाता था .. मै शुरू से अब तक श्री देवी का फेन रहा हूँ .. अभी हाल ही मै आई ' मोम ' और ' इंग्लिश विन्ग्लिश ' फिल्म को मै थियेटर में देखने गया था . मै सदेव से उसकी फिल्म का इंतजार करता था ... अब निशब्द हु ... कुछ कह नही सकता .. या कहने को शब्द नहीं है ...बीएस इत्ता कहूँगा की -
रहता नहीं इंसान तो मिट जाता है गम भी
सो जायेंगे इक़  रोज जमी ओड के हम भी ..
जिन्दगी सागर है जिन्दगी बूंद है जिन्दगी थम जाती है कभी भी
बस रह जाती है एक गूंज है.....😪😪😪

my poem - scam

पुष्कर में रहता एक पंडित
नाम था उसका भोलाराम

पूरा जीवन बिता दिया उसने
ले लेकर भारत का नाम

छा गई दिमाग में उसके
सरफरोशी की तमन्ना

कोई भगत सिंह कहता उसको
कोई कहता गांधी अन्ना

एक दिन बीमार हुए पंडित जी
लोगों को हुआ बहुत ही शौक

पंडित की जीवन डोर टूटी
और पहुंच गया यमलोक

वहां पहुंच पंडित ने देखा कालों का काला सरदार

यम नगरी में सोच रहा घड़ियों का दरबार

पंडित पर गया सोच में
आखिर इतनी घडीया क्यों

थोड़ी हिम्मत कि पंडित ने
पूछ लिया यमराज से यों

यम दरबार में प्रभु इन घड़ियों का क्या काम
क्यों लिखा है हर घड़ी के नीचे दुनिया के हर देश का नाम

यह सुन बोल उठा यमराज की पंडित यह है भ्रष्टाचार की घड़ियां
जिस देश की घड़ी की सुई में तेजी उसकी शासन व्यवस्था घटिया

यह सुनकर पंडित खुश हुआ वाह भारत में भ्रष्टाचार नहीं है
क्योंकि दुनिया की इन घड़ियों में भारत की घड़ी नही है

ज्यादा खुश मत हो पंडित फिर बोल उठा यमराज
भारत की घड़ी इनमें नहीं है इसका बताता हूं मैं राज

बोफोर्स से लेकर PNB तक
नेताओं की पोल खोल रहा है
इसीलिए तो भ्रष्टाचार भारत भू पर डोल रहा

पहले कोयला, फिर 2g फिर कॉमनवेल्थ आया।
सरकार भी बदली पर भ्रस्टाचार मिट नही पाया।

व्यापम देखो, अगस्ता देखो, देखो बैंक लूटने वाले
900 करोड़ का चारा खाकर, केवल 3 साल जेल जाने वाले।

स्नेपडील के सीईओ ने भारत को बताया गरीब राष्ट्र
स्विस बैंक भी हस पड़ा, बयान था कि बकवास

कोन है विजय माल्या, ललित नीरव है कोंन।
लगता है अब बैंक भी पासपोर्ट जप्त कर देगा लोन।

घोर भ्रष्टाचार से पंडित तेज हो जाए घड़ी की सुई इतना वेग सहन न करके धरती पर गिर जाए यूं ही

शासन के उन नेताओं का नाम है गद्दार।में

सिद्ध फैसला घड़ी का नहीं लगाया दरबार में

भ्रष्ट नेताओं के विरोध में जनता का खून खौल रहा है

और भरी जनता में ज्योति प्रकाश खुले शब्दों में बोल रहा है ©

Sunday, 28 January 2018

मेरी पूर्व पीढ़ी

आज के पीढ़ी में कोई भी अपने पुरखो के बारे में जानने में रुचि नही दिखाता। लेकिन जब मैं मालपुरा के राम गोपाल बाबा से कल रात बैठकर बात कर रहा था तभी उनके मुंह से निकल पड़ा कि हमारा ओर तुम्हारा खून तो एक ही है।
मैं अचंभित सा हो गया।
कैसे??
हालांकि वो भी श्रोत्रिय ही थे मैं जानता था, पर वो क्या हमारे परिवार में से ही थे???
तब उनकी वाइफ जिन्हें मैं दादी बुलाता हुँ ओर वो, दोनों ने मुझे इस बारे में अवगत कराया।
ये पीढ़ी शुरू होती है सेकड़ो वर्ष पहले बलराम जी से।
जिनके 2 बेटे हुए। गणेश जी और एक का नाम नही पता। मां लीजिये A
गणेश जी के 2 बेटे हुए - कल्याण जी और रामनिवास जी।
A के 3 बेटे हुए - गोरु जी, जगन्नाथ जी, नंदलाल जी।
कल्याण जी के 4 बेटे हुए- मूलजी, लादुमल जी, दामोदर जी, प्रेम जी।
रामनिवास जी 2 बेटे हुए - छितर जी, राधेश्याम जी।

मूल जी की संतानें - शिवराज जी, शंकर जी, ओम जी, शम्भू जी, चंद्रप्रकाश जी।

लादु जी की संतानें - सूरज जी, रामबाबू जी, राजू जी, गिर्राज जी, पवन जी।

दामोदर जी की संतानें - मुकेश जी और कमल

प्रेम जी की संतानें - हंसराज जी, ब्रजराज जी, धर्मराज जी।

छितर जी की संतानें - रामलाल जी, लखन जी।

राधेश्याम जी की संतानें - रविन्द्र जी।

अब आते है A की पीढ़ी में - 
गोरु जी ने शादी नही की।
जगन्नाथ जी के 2 बेटे हुए - रामनिवास जी और रामकरण जी।
रामकरण जी खेड़ा गावँ near सोरण टोंक में जाकर बस गए। जिनके 2 बेटे थे कस्तूर जी और बजरंग जी।

रामनिवास जी के 4 बेटे हुए - प्रह्लाद जी, रामनारायण जी, बंशी जी और रामगोपाल जी।

A की तीसरी संतान नंदलाल जी की संतानें - हरजिलाल जी, कन्हैयालाल जी, मांगीलाल जी, 

मांगीलाल जी की संतानें - सीताराम जी और रतन जी।

कन्हैयालाल जी की संतानें - कैलाश जी।

हरजिलाल जी की संतानें - घनश्याम जी।


Wednesday, 24 January 2018

इतिहास की दुहाई??? सारे रजवाड़े, रियासते तो अंग्रेजो के तलवे चाटते थे

बहुत दिनो से इस विषय पर कुछ लिखने का मन था पर अवसर और समय की कमी मुझे वापस खींच लेती।

बॉलीवुड की सबसे महंगी फ़िल्म पद्मावती।
हाँ हो सकता है कि 1 साल पहले जयपुर में हुए फ़िल्म के डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ जो हुआ उसके बाद स्क्रिप्ट बदली है।
वाकई हम ये मानते है कि जो त्याग बलिदान और मातृभूमि के लिए जिन विरो ने खून बहाया उसे पर्दे पर नकारात्मक छवि के रूप में ना प्रदशित किया जाये।
यहां बात पद्मावती जैसी सावित्री रूपा रानी की है जिसने अपने देह को बलिदान कर दिया पर विदेशी आक्रांता को अपना शरीर भेंट नही किया।
पद्मावती को मेवाड़ में माँ के रूप में पूजा जाता है। हर साल चितोड़ की महिलाये जोहर कार्यक्रम आयोजित करती है।
ये बात अलग है कि इतिहास में पद्मावती नामका कैरेक्टर कोई था कि नही पर पद्मावती राजपुताना की शान के रूप में जगजाहिर है।
पद्मावती की कहानी को कोई डायरेक्ट अगर पर्दे पर उतारे तो क्या हर्ज है??
कुछ लोग इस बात का मजाक बनाते है कि पद्मावती फ़िल्म का नाम बदलकर पद्मावत कर दिया गया तो सिगरेट को सगरेट बोलेंगे तो उसका निकोटिन गायब हो जाएगा क्या??
उन मूर्खो को ये बताना चाहूंगा कि मूवी मालिक मोहम्मद जायसी की किताब " पद्मावत' पर आधारित है इसलिये मूवी का नाम भी पद्मावत ही किया गया।
करनी सेना राजनीति खेल रही है। बिना ट्रेलर देखे ही विरोध करना शुरू कर दिया था।
लोकतंत्र में विरोध के लिये जगह है पर हिंसा के लिये नही। वो लोग भी धमकी दे रहे है जिनको फ़िल्म देखने का शोक नही।
ट्रेलर में ही आप देख लीजिये की खिलजी को एक राक्षस रूप में दिखाया गया जो जानवरो की तरह मांस खाता है, जबकि पद्मावती को एक पवित्र, सती सावित्री किरदार में दिखाया गया है। ट्रेलर से तो ऐसा लगता है कि राजपूत इस पर गर्व करेंगे पर राजपूतों ने इस पर गर्व की बजाय राजनीति की।
करनी सेना के महासचिव खुले आम बोलते है  कि जो भी दीपिका की नाक काट कर लाएगा उसे 1 करोड़ रुपये दिया जाएगा। तब भी सरकार चुप रहती है।
दीपिका के कैरेक्टर पर हमला बोला जाता है तो भी सरकार चुप रहती है। कैरेक्टर पर उंगली क्यो भाई??
उसका कार्य है अभिनय करना और बाकी हिरोइन की तरह वो कभी किसी डायरेक्टर के सामने नग्न नही हुई है।
घूमर बजाने वालो को पीटो। सिनेमाघर को जलाओ। जो भी मूवी देखने जाय उनको बजाओ। ऐसा करके करनी सेना अपनी राजपुताना ताकत बता रही है??
आज तो हद ही हो गई जब गुरुग्राम में बच्चो से भरी स्कूल बस पर हमला किया। इनकी कायरता तो यहां दिखती है। इस पूरे वाकये में उन बच्चों का क्या दोष??
इनको लगा कि पूरे देश मे संगठन के नाम का प्रचार प्रसार और खोफ पैदा होगा पर इन्होंने ऐसी शर्मनाक हरकते कर देशभर में संगठन के लिए जो रेपुटेशन थी उसका नाश कर दिया।
पद्मावती का क्या है?? 4 स्टेट में नही चली तो क्या हुआ ।क्या विश्व के 70 देशों में भी कोई करनी सेना है??
क्या करनी सेना सुप्रीम कोर्ट और सेंसर से बढ़ी है??
ग़ांधी और बुद्ध के देश मे आम जनता और बच्चों को निशाना बनाना न्यायसंगत है??
हिन्दुओ के इतिहास से छेड़छाड़ का हवाला देने वालो सारे रजवाड़े, रियासते सब अंग्रेजो के तलवे चाटते थे। अगर उस वक्त अपनी क्षत्रिय ताकत दिखाते तो शायद आज भारत विश्वगुरु होता।