ये मेरा खरगोश था।
5 जुलाई 2016 को निवाई शनिवार को लगने वाले मेले में इसको परचेस किया था।
हाँ उस दिन मेरी छोटी बहिन पिंकी के साथ मेला देखने गया था, तब इस पर नजर पड़ी।
मेरी बचपन से इच्छा थी कि मैं एक खरगोश पालू। इस संदर्भ मैं सोमेश भैया से भी काफी बार बात कर चूका था। मुझे खरगोश खरीदने का एक सुअवसर प्राप्त हुआ था तो मैं कैसे छोड़ सकता था।
मेने पिंकी के सामने इसको खरीदने की इच्छा जाहिर की तो वो झल्ला उठी और मुझे खींचकर ले जाने लगी।
कुछ दूरी पर जाकर मैं रुक गया। मेरा मन नही मान रहा था। मैं एनिमल लवर हूं , मेने आज तक कोई जानवर नही पाला bt आज मुझे रहा नही जा रहा था, इच्छा मन की मन मे दबी थी। इस बार मेने पिंकी को खींचा ओर उस खरगोश बेचने वाले के पास ले गया।
200 रु. के खरगोश की कीमत जैसे तैसे करके मेने 120 लगाई। और एक जूतों के डिब्बे में बंद कर ले आया। बाइक मेने चलाई ओर खरगोश के डिब्बे को पिंकी ने पीछे पकड़ा।
हम घर पर आए तो पापा ने डिब्बा खोलकर देखा। वो भी काफी गुस्सा हुए । हालांकि मेरी छोटी चाची काफी खुश हुई। बाकी मेरे छोटे भाई बहिन भी खुश हुए। उसको साथ खेलने लगे। उसको लाड करने लगे। धीरे धीरे घर मे खरगोश देखने आने वाले बच्चो की संख्या बढ़ी।
शुरुवात में उसको रखने के लिए हमारे पास कोई पर्याप्त प्रबंधन नही था। तो हमने इसको तोते के पिंजरे में रख दिया। मेरे दादाजी ने बिल्ली को पकड़ने के लिए वो पिंजरा लाये थे। बिल्ली के तो काम नही आया और इसको खरगोश का अस्थाई घर बना दिया। इसी में घास ओर रोटियां डाली जाने लगी।
मेरी मम्मी खरगोश लाने पर मुझे डांटती थी पर मन ही मन वो उसे चाहती थी।
इसका नाम सर्व सम्मति से चम्मू रखा गया। चम्मू एक बहुत प्यारी बिल्ली का नाम था जो इसके आगमन से ठीक 6 माह पूर्व चल बसी। बहुत ही नटखट बिल्ली थी। हमेशा हम 2-3 घरों में चहल पहल करती रहती थी। जब भी हम खाना खाने बैठते वो आ टपकती ओर भोजन की मांग करती। पूरे घर को परेशान करती। एक बार चाचाजी की सीढ़ियों पर वो घायल मिली।
पता नही क्यो पर वो ऐसा लग रहा था कि वो अंतिम सांसे गिन रही है। मेरे चाचा ने जैसे ही उसको पुकारा वो चल बसी। बस उसी की याद में इस खरगोश का नाम भी चम्मू रखा गया।
मेरे पास उस वक्त 450 रु. save थे। मेने इन पेसो से गावँ के ही एक मुस्लिम मिस्त्री रसीद से पिंजरे का लोहे का गेट बना लिया।
उस दिन मेरा पूरा परिवार लगा था उसका पिंजरा बनाने के लिए। पापा, मम्मी, मैं , चिंकी, कालू, अकु, ओर छोटी चाची व पिंकी। सीमेंट व ईंटो के समिश्रण से उसका घर बना दिया गया। घर के बाहर लोहे का दरवाजा बना दिया गया। अंदर बजरी के एक अलग से ब्लॉक बनाया गया। ये सब बनाने का कार्य मेरे दादाजी ने किया। और अन्ततः खरगोश को पिंजरे के अंदर दाखिल कर दिया गया।
उन दिनों में उदयपुर रहता था। मैं चला गया। बाद में चिंता रहती थी कि पता नही चमु को टाइम पे खाना मिलेगा भी की नही। पर मेरे मॉम ओर पापा ने उसका एक बेटे की तरह खयाल रखा।
पापा तो हर शाम मम्मी को चिल्लाकर कहते ' खरगोश को खाना पटक दिया क्या?'
इसी तरह स्कूल जाते वक्त मम्मी को याद दिलाकर जाते।
मेरे छोटे भाई बहिन भी उसके लिए चारा, धोब, घास कहीं से ले आते। पड़ोसी गुर्जरों के बच्चे भी मम्मी के कहने से चारा ले आते।
अंतिम दिनों में तो दादाजी भी रोज शाम निवाई से आते वक्त घास की छोटी पोटली उठा लाते। कुल मिलाकर उसे कभी खाने की समस्या नही रही। उसे कुछ ही दिनों में मेरे घर वाले दुर्बल से सबल बना दिया था।
मैं जब भी घर जाता उसे साथ मे लेकर घूमता, उसके।साथ खेलता, उसको उछालता, उसको तकिया लगाकर सोता। उसको गोद मे भरकर बाहर घूमता।
वो घर पे भी जब स्वतंत्र घूमता तो सब घर वाले उस पर नजरें रखते की कही से कोई बिल्ली या कुत्ता आकर इसको झपट ना ले।
कई बार वो बिल्ली की चपेट में आने से भी बाल बाल।बचा। एक बार tv room में था। मैं bed पर लेटा गया था और दरवाजा थोड़ा सा बंद था। एक मोटी बिल्ली ने दरवाजा ख़ोल दिया। गनीमत रही मेरी नजर पड़ गई वरना वो झपटा मार कर उसे ले जाती या घायल कर देती।
एक बार तो हमारे नजदीक रहने वाले चक्की वाले अंकल का खरगोश भी लेकर आये थे। इसका मन लगाने के लिए। पर कुछ ही पलों में दोनों झगड़ने लगे।
ऐसा नही है सिर्फ हमारी family ही चम्मू को like करती थी। सोमेश भैया जब भी घर आते ,इससे मिलते इसको उठाकर घर लेकर जाते। ओम जी ताऊजी भी इसको देखकर खुश हो जाते। विकास भैया की family भी खुश हो जाती। उनके बच्चे के लिए वो कभी कभी खरगोश मंगवाते। हम सभी होली दिवाली खरगोश के साथ फोटो खिंचवाते, पिंकी ने तो चम्मू को रक्षाबंधन पर राखी बांधकर फ़ोटो fb पर भी अपलोड किया था। कविता दी का लड़का भी उसको देखकर खुश हो जाता। उसके साथ खेलता। रिंकू दी कि बच्चे भी खरगोश देखने की जिद्द से घर तक आते। सुनीता दी की लड़की तो उससे बहुत डरती थी। वो सबका चहेता था, वो सबका प्यारा था।
कभी कभी तो एक-एक महीने हो जाते थे, कोई भी उसको उसके घर से बाहर नही निकलता था। जब मैं घर पर आता तभी वो बाहर निकलता।
एक बार हम घर वाले किसी काम मे बिजी हो गए थे, या फिर किसी दूसरे गावँ चले गए थे, तब इसको खाना डालना भूल गए थे।
दूसरे दिन पापा जब चम्मू को भोजन डालने गए तो उसने नाराज होकर खाली पड़ी कटोरी को मुँह से भर कर बाहर फेंक दिया। 😀
बहुत याद आता है वो। सच मे। धड़कनो में बस कर कहाँ चले गए मेरे चम्पू। 😪
वो अपने पैरों को उठाकर हाथ जोड़ता तो वो पल सबको बहुत अच्छा लगता। सब उसकी इस अदा को लाइक करते।
कोई उसको पिंजरे से बाहर निकलने की कोशिश करता तो उसके बड़े बड़े नाखून हथियार बनते। मैं खुद उसको उसके पीछे का भाग पकड़ के खींचता था।
खरगोश सबसे प्यारा जीव होता है। हर कोई उसको पसंद करता है। ये बात और है कि उसके गल गल से बालों से डरकर कुछ लोग उसको स्पर्श करने से डरते है। अशोक, मेरी मम्मी, ओर छोटी बहिने भी उसको स्पर्श नही करती थी।
कभी कभी मैं बेड पर लेटा उसको अपने पेट पर रख देता। वो उछल कूद करता। कभी कभी उसे जब बेड पर ज्यादा देर हो जाती तो वो नीचे कूदने का रास्ता ढूंढता। ओर जब वो कूदने में सफल हो जाता तो बहुत तेज़ भागता। जब हम उसको पकड़ने भागते तो वो ओर दूर कहीं कोने में जाकर हमको तंग करता। हम उसके पीछे पीछे भागते रहते।
जब उसको भूख लगती तो वो पिंजरा खटखटाता.. फिर मम्मी उसके लिए खाना लेकर आती।
सर्दियों में उसकी सुरक्षा के लिये बोरी बिछाई जाती व पर्दा लगाया जाता था।
ये 17 जनवरी 2018 की सुबह थी। मैं बेरोजगार था तो घर पर ही रहता था। सुबह जब मम्मी उसको खाना डालने गई तब वो बीमार से नजर आ रहा था। हमेशा की तरह आज उसने दरवाजा भी नही खटखटाया था। वो एकदम सुन्न था। वो मुड़कर देख भी नही रहा था। उसके पैर फैले हुए थे।
मम्मी ने इस बारे में मुझको अवगत किया। मेने उसको देखा तो उसको उठाकर थोड़ी देर बाहर रखा। फिर भी कुछ भी रेस्पॉन्स उसकी तरफ़ से नही मिल रहा था। मैं उसको उठाकर मेरी दादी के पास ले गया। मेरी दादी ओर बड़ी चाची ने इस पर चिंता जाहिर करते हुए हमारे समीप रहने वाले अंकल के पास ले गई, जिनके पास पिछले 20 वर्षों से खरगोश था। उसने भी ध्यान न देकर बस इतना कह दिया कि बस केवल जुखाम हुआ है। मेने उसको वापस लाकर पिंजरे में रख दिया और पढ़ाई करने लग गया।
दोपहर को मुझे नींद आ गई। और सो गया। 4 बजे के करीब मम्मी ओर छोटी बहिन ने मुझे जगाया ओर बताया कि खरगोश बुरी तरह बीमार हो गया है। मेने उठकर संभाला तो पाया कि अब इसमें एक प्रतिशत भी ऊर्जा मुश्किल से बची है। मैं तुरंत बिना देर किए निवाई अस्पताल की ओर भागा। बाइक पर मेरे साथ अशोक बैठा। खरगोश को एक पोली बेग में रखकर हम तेज़ स्पीड में चले जा रहे थे।
आधी दूर पर अशोक मुझे कहता है कि इसने हिलना डुलना बंद कर दिया। मेने इस बात को दरकिनार कर बाइक चलाता रहा ।
हम चाचाजी के प्लाट पर पहुंचे जँहा दादाजी मकान का काम करवा रहे थे। मेने उनको पूरी बात बताई। उन्होंने कहा की अस्पताल को अब बंद हो गया पर इसको एक बार बाहर निकालो।
मेने ज्यो ही उसे बाहर निकाला और जमी पर रखा तो वो 3 गुलाटी मारते हुए उसने प्राण विसर्ग कर दिए। हम सबकी आंखे खुली की खुली रह गई। लगा जैसे सांस रुक गई। हम वही पर बैठकर निशब्द हो गए। मेरी चचेरी बहिन चिंकी भी वहां आ गई और उसने भी काफी दुख व्यक्त किया।
थोड़ी देर बाद मेरे फ़ोन पर मेरे पापा भी वहां आ गए। हमने बीच राह में पड़ने वाले जंगल मे उसको गिराने की सोची, बात गिराते ही ऐसा लगा जैसे कि उसने चूं-चूं की आवाज निकाली है। हमारा मन नही मारा ओर घर ले आये। घर पर लाते ही भीड़ लग गई। सब उसके बारे में ही बात करने लग गए। पडोशी भी इकट्ठे हो गए। सबने प्लान बनाया की गिरधारी पूरा गावँ के जंगल मे इसको रख के आया जाए।
मैं जैसे ही उसको ले जाने लगा मेरी मम्मी फुट फुट कर रोने लगी। क्योंकी उसने ही इसकी सेवा की थी। उसने ही उसको पाला था। मैं तो उदयपुर था।
मैं ओर अकु मिलकर उसे बालाजी के जंगल मे छोड़ आए जँहा 2 दिन बाद फिर उसकी लाश भी नही दिखाई दी।
हमने ये गलती की की उसके शव को गाढ़ा नही। वो हमारा प्रिय था, उसे आखिर आवारा की तरह कैसे छोड़ सकते है। खेर अब तो पश्चाताप ही रहैगा।
पता नही कोनसी बीमारी थी, पर वो चला गया। बहुत दूर ।
अंतिम पलो में मेरी भावनाएं कुछ इस प्रकार थी -
आज मेरे चम्मू की टमाटर जैसी लाल आंखे नीली क्यों पड़ी हुई है😦
आज हमेशा की तरह ये मुझे देखकर अपने कान खड़े क्यों नही कर रहा है।😦
आज ये अपने पंजो से अठखेलियाँ क्यों नही कर रहा है
आज ये मेरे पेट पर उछल कूद क्यों नही कर रहा है
पूरे घर मे उछल कूद व शरारती इसके पैर आज एक क्यों एक जगह पर स्थाई है।😓
आज इसका पिंजरा सुना क्यों है। इस पिंजरे में पड़ी रोटियां, बिस्किट, और घास अभी तक खत्म क्यों नही हुई।😒
रोज शाम की तरह इसके लिए घास लाने वाले मेरे दादाजी आज खाली हाथ क्यों आये।😟
इसके साथ खेलने वाले मेरे चचेरे छोटे भाई बहिन आज पिंजरे को क्यों नही खोल रहे।😴
10 साल से मेरी जिस माँ की आंखों में कभी आँसु नही आये( disease) वो आज फुट फुट कर क्यों रो रही है😴
मेरी जिस छोटी बहिन को इसको हाथ लगाने से डर लगता था वो आज क्यों इसको स्पर्श कर रही है
हर शाम सर्दी से सुरक्षा के लिए जो पर्दा इसके पिंजरे पर लगाया जाता था, वो आज क्यों नही लगा है।😌
वो तुम ही थे जो बिल्ली की आवाज पर डरकर मुझसे चिपक जाया करते थे।
वो तुम ही थे जो हर सुबह भूख लगते ही पिंजरा खटखटाया करते थे।
वो तुम ही थे जिसको खाने की चीज़ डालने में देरी हो जाती थी तो मुह से कटोरे को ही बाहर फेंक दिया करते थे😪😪
वो तुम ही थे जब हमारी fmly कही बाहर जाती थी तो तुमारी खैरियत के लिए जिम्मेदारी पड़ोसियों को देकर जाती थी😪
वो तुम ही थे जिसकी मेरी माँ ने विगत 558 दिन तक निस्वार्थ भाव से सेवा की
कहाँ चले गए तुम,
आखिर क्यों ये अंखिया भीगा गए तुम 😪
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