भारतीय संस्कृति की यही विशेषता है। यहां ये आस्था के साथ शुरू होती है, तर्क चाहे कोई भी हो लेकिन विज्ञान भी मानने को तैयार हो जाता है। और इसके विरोध में आवाज नहीं उठ पाती है।
हम छठ पर्व पर उगते सूर्य को अर्ध्य देते है। वो भी जल में खड़े रहकर। सूर्य की बहिन छठ मैया की अनुकम्पा बनेगी जो बनेगी लेकिन सूर्य से उषा काल मे आने वाली फार इंफ़्रा रेंज भी हमको मिलेगी जो फ्री का केल्शियम है। विटामिन D को प्रचुर मात्रा है। जिसके दम पर हम पूरे दिन भर कार्य कर सकते है। बिना थके। #sj_feeling
देखिये ना इस संस्कृति की विशेषता जो डूबते सूरज को प्रणाम करती है। ये बताती है कि बुजुर्ग भी हमारे लिए उतने ही पूजनीय है जितने धरती पर आए वाले नवजात।
देखिए ना। हम कहते है पीपल के पेड़ में लक्ष्मी का वास होता है। उसको पूजिये। उसको काटिये नहीं। पाप लगता है। विज्ञान कहता है कि पीपल का पेड़ है एकमात्र ऐसा पेड़ है जो 24 घण्टे आक्सीजन देता है।
हम रात को पेड़ को छूते नहीं। हमारा मानना है कि पेड़ो में भी प्राण है। वो भी सोते है। विज्ञान भी तो यही कहता है कि पेड़ भी सजिव है। 😊
हमारे श्री कृष्ण ने तो पूरे गोकुल में डंका बजा दिया था कि दीवाली के दूसरे दिन इंद्र की पूजा करने के बजाय पहाड़ों की पूजा करो, वृक्षों की पूजा करो। इन्हीं से तो बारिश आती है। दीवाली के दूसरे दिन इसीलिए हम प्रकृति की पूजा करते है। उसी गोबर को खाद के रूप में खेतों में डालते है।
हम कहते है भोजन को झूठा छोड़ोगे तो अगले जन्म में अन्न नहीं मिलेगा। ये कहावत भी भोजन के सम्मान को दर्शाती है।
हम कहते है पानी को बहाओगे तो जल देवता नाराज हो जाएंगे।
वो बात अलग है कि कोई जल देवता है भी की नहीं। लेकिन ये संस्कृति सदियों से प्रकृति के संसाधनों को बचाने की अपील करती आई है। इसलिए यूनान, रोम और अन्य संस्कृतियां जहां विलुप्त हो गई, हमारी संस्कृति सदियों बाद भी जीवित है। by the way..
Happy chatt pooja 🙏