#KBC की सीट पर अमिताभ के सामने जयपुर की वो महिला बैठी थी। जिसका बेटा दिव्यांग था। उसने बताया कि वो थिएटर में इसलिए फ़िल्म देखने नहीं जाती क्योंकि वहां बैठे लोगों को उसके बेटे से प्रॉब्लम होती है।
अमिताभ ने कहा क्यों ना अलग से ऐसी व्यवस्था की जाए कि ऐसे बच्चों को भी फ़िल्म देखने का अवसर प्राप्त हो।
महिला ने बात काटी ओर बोली - सर। मैं सोच रही थी कि ऐसी व्यवस्था की जाए कि सभी लोगों के साथ मिलकर वो भी फ़िल्म देख सके। उनके लिए अलग से व्यवस्था करके तो हम उनको अलग थलग कर रहे है। उनको समाज का हिस्सा ही नहीं बना रहे है। उन्हें ये फील करवा रहे है कि वो असाधारण है। वो आम मनुष्य नहीं है।
अमिताभ अगले 5 सेकेंड तक सोचने पर मजबूर हो गए। उन्होंने कहा बात आपकी बिल्कुल ठीक है।
फिर बात चली दिव्यांग शब्द पर। अमिताभ ये वर्ड बार बार बोल रहे थे।
इस बीच उस महिला ने एक बार फिर बोला - " सर इंसान है, इंसान रहने दीजिए ना। ये तो वही बात हो गई कि नारी या तो पैर की जूती बनती है या देवी। लेकिन को इंसान तो बनाता ही नहीं है। ऐसे ही दिव्यांग शब्द भी बहुत घातक है। हम फिर उनको असाधारण महसूस करवा रहे है। हम उनको बता रहे है की आप आम इंसान नहीं है। आप उस श्रेणी में नहीं आ सकते।
ये शायद पहला मौका था जब अमिताभ सोचने पर मजबूर हो गए।
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