Saturday, 2 November 2019

दिवाली पर साड़ी या जीन्स


इस पर रंजना जायसवाल की एक कविता याद आती है। जब साड़ी और जीन्स में तकरार होती है। साड़ी जीन्स को गालियां देती है कि कुलटा, विदेशी, मेरे देश मे आकर मुझे ही बर्बाद कर दिया। मैं वैदिक काल से स्त्री की पहचान बनते आई हूं लेकिन आज लड़कियां तो क्या बूढ़ी औरतें भी तुझे पहनने से नहीं झिझकती। क्या है तुझमे ऐसा। छोटी बच्चियां मुझे पहनकर मम्मी की नकल करती थी पर तेरे आने के बाद मैं कही खो गई हूं। तेरे खिलाफ इतने फतवे जारी होते है फिर भी तू इस देश मे राज कर रही है। कॉलेज देखों या ऑफिस हर जगह लड़कियां तुझे ही पहनती है।
इतने में जीन्स बोली कि बहिन नाराज मत हो। बेशक मैं आज तुझ पर हावी हूँ पर जब भी कोई त्योहार आता है, मैं तड़पती हूँ कि कोई मुझे पहने। दीवाली पर जंहा देखो वहां कुंवारी लड़कियां भी तुझे पहनती है। जब भी घर मे कुछ फंक्शन हो, शादी का प्रोग्राम हो तो मैं दरकिनार कर दी जाती हूँ और तुम जीत जाती हो। भारतीय परिधान जीत जाता है। 
ये पोस्ट उन सभी बहिनो को समर्पित जिन्होंने लक्ष्मी पूजा के लिए भारतीय वेशभूषा का चयन किया है। 🙏😀 

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