Saturday, 18 May 2019

सनातन संस्कृति का असली रूप : दक्षिण के लोग

कहना गलत नहीं होगा कि सनातन धर्म का वास्तविक - मूल स्वरूप केवल दक्षिण भारतीयों में हीं शेष है। उनकी पूजा विधि, त्यौहार, कर्मकांड यहां तक कि देवता भी प्राचीन काल से वहीं है। विज्ञान ,तकनीक, गणित , कला ,संगीत सबमें कहीं न कहीं दक्षिण भारतीय उत्तर भारतीयों से कहीं आगे होते है, किन्तु इन सबके बावजूद आधुनिकता के नाम पर ये लोग न अपनी परम्पराएं तोड़ते, न अपनी धार्मिक प्रवृत्ति को छुपाते और न ही सेक्युलर दिखने के फेर में दरगाहों या चर्च के चक्कर लगाते। बल्कि दक्षिण भारतीय दुनियां के किसी भी कोने में रहें वहां अपना एक समाज खड़ा कर लेते हैं , और शुरुवात से ही अपने बच्चों को अपने धर्म और संस्कृति से जोड़ते है। एक तरफ जहां मध्यप्रदेश, दिल्ली,पंजाब, बिहार ,उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में भजन और श्लोकों का स्थान फूहड़ फिल्मी पैरोडियों और कानफोड़ू गीतों ने ले लिया है, वहां आज भी दक्षिण के भजन - गीत सुनकर मन को असीम शांति मिलती है, आज भी दक्षिण के ही गायक - गायिकाओं द्वारा आपको संस्कृत श्लोक - मन्त्र या स्त्रोत्र सुनने को मिलेंगे, बाकी जगह तो देसी भाषा, देसी भाव (जिसमें भक्ति भाव तो रत्ती भर भी नहीं होता) और विदेशी संगीत ही देवपूजा में बजता दिखता है। दक्षिण भारत की इसी संस्कृति को देखकर कई वर्षो से कांग्रेस और कम्युनिस्ट सरकारे वहां बड़ी तादाद में धर्म परिवर्तन करवा के ईसाइयत को बढ़ाती रही है, तो कभी आर्य और द्रविण थ्योरी के नाम पर फूट डालने का प्रयास करती रही है। केरल तो इनकी सनातन संस्कृति के विरुद्ध रची जा रही साज़िशों का सबसे बड़ा केंद्र रहा है , बावजूद इन सबके आज "सबरीमाला" में जिस तरह केरल वासियों ने एकता दिखाते हुए इन फ़र्ज़ी भक्तों और फ़र्ज़ी सेक्युलर्स (जो केरल के ही एक बिशप द्वारा एक नन के साथ ब्लात्कार का मौन समर्थन करते है, तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रिपल तलाक को बैन करने का विरोध भी करते है) को रोका है यह इनके गाल पर एक करारा तमाचा है।काश यह हिम्मत दक्षिण भारतीयों ने पहले दिखाई होती तो सनातन संस्कृति और भक्तिकाल के उद्भव का केंद्र रहे दक्षिण भारत को आज ये दिन भी न देखना पड़ता। काश अपने धर्म, संस्कृति और परंपराओं के प्रति ऐसी ही जागरुकता देश के बाकी हिस्सों में भी होती। काश भक्ति के नाम पर डीजे पर फूहड़ - भद्दे गाने बजाकर नाचने वाले सच मे सनातन धर्म के मूल को समझते। काश खुद को आधुनिक दिखाने के फेर में अपनी धार्मिक प्रवृत्ति छुपाने में कोई संकोच न करता....काश अपनी संस्कृति और धर्म पर इतना गर्व और विश्वास होता कि कुछ मिल जाने के लालच में कभी चर्च, कभी दरगाह या कभी किसी "नए जन्मे भगवान" के दर पर मत्था टेकने की जरूरत नहीं पड़ती....काश 

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