भाषा अल्फाज ही नही, भावना भी है। देख ही लीजोये, अपनी टूटी इंग्लिश की बदौलत विदेशी मेहमानों का दिल जीत लेती है मेरी माँ। बेशक Where are you from की जगह ' You come where ' बोलती है। have u visited whole india की जगह you walking idhar udhar बोलती है। और कभी कभी तो कम्युनिकेशन के लिए कोई सेन्टेश याद नही आ रहा हो तो उनको मुह पे ही ' यु आर स्टुपिड ' बोलती है। कुछ भी हो पर वो एक परफेक्ट संवाद स्थापित करती है जंहा अल्फाज कम और अहसास ज्यादा होता है। पढ़े लिखे MBA, B.ed धारी लोगों में इतना कॉन्फिडेंस नही होगा जितना मेरी माँ में है। ये अपनी टूटी फूटी इंग्लिश की बदौलत विदेशी मेहमानों का सत्कार करती है.. लोग इन विदेशियों को एड्रेस बताने में भी कतराते है.. सोचते है कि इंग्लिश खराब हो जाये तो आस पास के लोग हम पर हसेंगे। ऐसे वक्त पर मेरी माँ एड्रेस ही नही बल्कि उनकी अच्छी फ्रेंड बन जाती है.. और वो मम्मी के साथ फोटो कैमरे में कैद किये बगैर नही जाते। पर्टिकुलर 4-5 सेन्टेश से ये अथितियों को बता देती है कि इंडियन दिल के बहुत अच्छे है।
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