Saturday, 18 May 2019

भारतीय पत्रकारिता की दुर्दशा

भारतीय पत्रकारिता :- 👇 
आज की ही हेडिंग ले लीजिए।
"अलवर में एक दलित युवती के साथ दुष्कर्म।'
यहां मामला कोई सा भी हो, पर 'दलित' शब्द जोड़ना अनिवार्य है। क्योंकि इससे खबरे चलती नही दौड़ती है। उड़ती है। जातिगत निर्णय से चुनाव ही नही जीते जाते बल्कि पत्रकारिता में हेडिंग भी बनाई जाती है। कोई सी भी घटना हो .. नेगेटिव निकले तो खबर चलने वाली है, ओर अगर उसमे दलित से पेच जुड़े है तो सोने पे सुहागा। खोखली होती जा रही है पत्रकारिता। 😏😣
खैर छोड़िये। आगे और सुनिए भारतीय पत्रकारिता की दुर्दशा। 
गाड़ी पर प्रेस लिखवालो, नम्बर की तो जरूरत ही नही है। तीस मार खां है ना। बिना हेलमेट गाड़ी चलाओ, क्योंकि परिवहन के सारे नियम हमारे लिए तो बने ही नही है। पुलिस वाला रोके तो गर्व से कहो -'प्रेस' ! छाती ठोककर कहो - पत्रकार हूँ ' 5-6 बार मे तो वो बोलना छोड़ देगा। क्योंकि लोकतंत्र को हम ही खोखला कर रहे है।
हम ही कर्मचारियों, ओर अधिकारियों से रिश्वत लेते है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते है। 
आजादी से पहले पत्रकारिता मिशन थी। अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेखने का हथियार थी। और अब विलासिता बन गई। अब हमें पत्रकारिता में ग्लेमर दुनिया नजर आती है। अब हमें व्यवसाय नजर आता है।
इसमे हमारी ही गलती नही, बल्कि आपकी भी है। आपको वही खबरे पसंद आती है, जिनमे मशाला हो। 
कब सुधरेंगे मीडिया संस्थान ।।

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