बात 2 साल पुरानी है। #sj_feeling वो एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र के पत्रकार रह चुके है। #NameHide
एक विषय पर समाचार लिख रहे थे - 'शहर में दिखाई दिया पेंथर '
उन्होंने अपनी स्क्रिप्ट में पैंथर को हाईलाइट कम किया और जल, जमीन, ओर जंगल को ज्यादा हाईलाइट किया। वे टाइप कर रहे थे कि बाघ शहर की ओर मुंह क्यो मार रहे है। क्योंकि जंगल खत्म होने जा रहे है। जंगलो में पानी की कमी होती जा रही है इसलिए जंगली जीव शहर की ओर आ जाते है। " बस ये थी उनकी स्क्रिप्ट।
उन्होंने मुजसे भी इस विषय पर स्क्रिप्ट लिखने को बोला। वो देखना चाहते थे कि मैं क्या लिखता हूँ। ओर मेने लिखा -
" शहर के इस रिहायशी इलाके में पैंथर की खबर से खलबली मच गई। आनन फानन में वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची और पैंथर की तलाश में जुट गई। पैंथर के पगमार्क से क्षेत्र में दहशत का माहौल है। जाने कब खूंखार पंजे वाला बाघ किस पर हमला कर दे. नगर के बाशिन्दे अब तो घर से बाहर निकलने से भी दे रहे है।'
अब सवाल खड़ा होता है कि खबर किसकी ज्यादा चलेगी ???
मेरी स्क्रिप्ट में जल, जंगल, जमीन की बात नही थी। पानी और हवा की बात नही थी। यहां तड़क भड़क ज्यादा थी। मसाला ज्यादा डाला गया। क्योंकि लोगो को वो ही पसंद आता है।
कहना ये चाहता हूं कि गलती भारतीय पत्रकारिता की नही है जो रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, जल, जंगल की बात करे। असल मे आज के जमाने के लोगो को ये सब चीज़े पसन्द ही नही आती है। वो नही पढ़ना चाहते ये ज्ञान की बाते। उनको बस मसाला चाहिए। चाहे खबर हो, मूवी हो या खाना। पत्रकारिता अब रुपयों पर टिकी है। यहां कोई स्वंतंत्रता आंदोलन नही हो रहा की जनजागृति करे। यहाँ TRP कि अंधी दौड़ पैसों के लिए है। क्योंकि अब ये व्यवसाय है।
कृपया अब कोई ना कहे कि पत्रकारिता का स्तर घट गया। स्तर घटने में भी जनमानस का बहुत बड़ा हाथ है। जल जमीन जंगल की बात करने पर कोई खबर को नही पढ़ता, नही सुनता। तो फिर काहे की चलेगी खबर। लोग खुद पसंद नही करते। चाहे चला कि देख लीजिए। देखते है कितने व्यूज मिलते है। मीडिया वालों के भी बाल बच्चे है, उन्हें ज्ञान नही बांटना। बल्कि खबर दौड़ानी है।
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